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11 Apr 2025 · 6 min read

चार्वाक जिंदाबाद

चार्वाक जिंदाबाद
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महर्षि बृहस्पति ने कहा है कि जब तक जीओ,सुख से जीओ और कर्ज करवाकर घी पीओ। मरने के बाद दाह-संस्कार कर देंगे।कर्ज चुकाने के लिये कोई पुनर्जन्म तो होना नहीं है।तो फिर कर्ज क्या श्मशान की राख वापस करेगी? हमारे अधिकांश धर्मगुरु, कथाकार, योगाचार्य,अभिनेता, खिलाड़ी,नेता, पूंजीपति ,अधिकारी, व्यापारी,न्यायाधीश, प्रोफेसर , चिकित्सक आदि बृहस्पति के दर्शनशास्त्र को अपने आचरण में उतार रहे हैं।समकालीन संदर्भ में इसी बृहस्पति के दर्शनशास्त्र पर थोड़ा विचार कर लेते हैं।
एक या एक से अधिक व्यक्तियों का एक साथ मित्र या प्रेमी या प्रेमिका या पति या पत्नी या भाई या बहन या माता या पिता के रूप में रहने का कारण प्रेम या प्यार या स्नेह या ममता आदि कभी भी नहीं होते हैं। विषमता ,असुरक्षा, भेदभाव, प्रताड़ना,अंध-प्रतियोगिता ,अन्यान्य, ज़ुल्म,अव्यवस्था और अपराध से लबालब भरे संसार में प्रेम, प्यार, दोस्ती आदि का कोई स्थान नहीं है। परस्पर प्रेम,प्यार, स्नेह, ममता,मैत्री आदि सिर्फ एक ऐसा आदर्श हैं जिसको कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। सुधारक, कथाकार,संत, योगी, धर्माचार्य,शिक्षक, नेता आदि विविध मंचों से झूठ पर झूठ बोलते रहते हैं।ये सब जनसाधारण को इस संबंध में वास्तविकता से अवगत नहीं होने देते हैं। संसार के सबसे बड़े झूठ को सत्य कहकर प्रचारित करना बडे और आदरणीय लोगों का धंधा बन चुका है। भुक्तभोगी लोग विरोधाभास से भरे हुये संसार में प्रेम, प्यार ,स्नेह, ममता ,मित्रता आदि की असलियत बता सकते हैं।हवा हवाई वक्तव्य देने से कुछ भी हासिल नहीं होता है। ऐसे वक्तव्यों से किसी का न तो पेट भरता है,न किसी को शिक्षा मिलती है,न आवास मिलता है तथा न ही बिमार होने पर दवाई मिलती है।
किन्हीं भी व्यक्तियों का परस्पर एक दूसरे के समीप आना प्रेम या प्यार या मैत्री आधारित न होकर कुछ अन्य कारणों पर आधारित होता है।उन कारणों में मुख्यतः किसी न किसी प्रकार के स्वार्थ की पूर्ति की कामना, किसी जरूरत को पूरा करने का लक्ष्य,कामुक संबंध बनाने की चाह,अकेलेपन से परेशान होना आदि की गिनती की जा सकती है। उपरोक्त स्वार्थ, जरूरत, कामुकता और अकेलेपन की समस्याओं का संबंध वर्तमान से भी हो सकता है और भविष्य से भी हो सकता है। अतीत को तो लोग लगभग भूल ही जाते हैं। लोग अतीत की सिर्फ दुश्मनी को ही याद रखते हैं, सहयोग आदि को तो लोग लगभग भूला ही देते हैं।बस एक बार स्वार्थ, जरूरत, कामवासना और अकेलेपन की समस्याओं का समाधान हुआ और तुरंत अपने मित्रों, दोस्तों, प्रेमियों, प्रेमिकाओं, माता, पिता,भाई, बहन, गुरु आदि को भूल जाना एक सामान्य सी आदत सभी में देखी जा सकती है। सांसारिक व्यक्ति तो ऐसे ही होते हैं। संसार में सफलता ऐसे लोगों को ही मिलती है। संसार में उन लोगों की कोई हैसियत, इज्जत, सम्मान, प्रतिष्ठा और गिनती नहीं होती है, जिनके पास प्रेम, प्यार, मैत्री,वायदा निभाने की दौलत होती है। ऐसे लोगों को हर किसी से,हर कदम पर तथा हर समय पर सिर्फ विश्वासघात ही मिलता है।
बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करना सांसारिक व्यक्ति के लिये तो असंभव है। संसार में यह किसी से छिपी बात नहीं है कि काम निकलने पर पुराने से पुराने मित्रों को धोखा दे दिया जाता है। बिना जरूरत के कोई किसी से दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाता है। रुपये की जरूरत है, सुरक्षा की जरूरत है,कामुक संबंध बनाने हैं या अकेलापन दुखी कर रहा है तो आपको किसी भी लडके या लड़की की तरफ दोस्ती या प्रेम का हाथ बढ़ाना चाहिये। और जब आपकी जरूरत, सुरक्षा, अकेलेपन की समस्या और कामवासना की पूर्ति कहीं और से पूरी होने लगे तो तुरंत दोस्ती तोड़ दो। यहां स्थाई दोस्ती और दुश्मनी जैसा कुछ भी अस्तित्व में मौजूद नहीं होता है। हां, अपने दोस्तों को ठगने या मूर्ख बनाने या उनसे काम निकालने के लिये इस प्रकार की शिक्षाओं को हथियार की तरह प्रयोग किया जा सकता है।आचार्य चाणक्य ने आज से 3800 वर्षों पूर्व अपने ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में कहा था ‘अर्थ एवं प्रधान इति कोटल्य:!!अर्थमूलौ हि धर्मकामाविति!! अर्थात् संसार में धन ही मुख्य वस्तु है।धन के अधीन ही धर्म और काम हैं।
इस उपदेश की सत्यता में कोई संदेह नहीं है कि भौतिक धन,दौलत, गाड़ी, बंगले, जमीन, जायदाद, कारखाने, बैंक बैलेंस मरते समय साथ में नहीं जायेंगे। यह भी ठीक है कि प्रेम, भाईचारा,आदर , सम्मान, संतुष्टि, तृप्ति तथा करुणामय व्यवहार ही मरते समय साथ जायेंगे। लेकिन समस्या यह है कि सांसारिक लोग प्रेम, भाईचारे आदि की भाषा को समझते ही नहीं है।इस तरह का बर्ताव करने वाले व्यक्ति को पागल, मूर्ख, भोला,अविकसित और पुरातनपंथी मानकर उसका मजाक उड़ाया जाता है। ऐसे व्यक्ति को पुलिस, प्रशासन, नेता,शिक्षा, डाकखाना, सेना, चिकित्सा आदि सभी विभागों में कोई महत्व नहीं दिया जाता है। ऐसे व्यक्ति को सभी यह कहकर अपमानित करते हैं कि तुम कौनसे युग में जी रहे हो? ऐसे व्यक्ति को तो कहीं लाईन में लगकर सामान भी सरलता से नहीं लेने देते हैं। भौतिक संसार का नियम तो धोखाधड़ी,झूठ, कपट,छल, विश्वासघात, आपाधापी, हिंसा, प्रताड़ना, अपमान, पाखंड, ढोंग आदि के साथ जीना है। सीधे -साधे व्यक्ति को तो कोई बस या ट्रेन में बैठने की सीट तक भी नहीं देता है। ऐसा व्यक्ति छोटी या बड़ी किसी भी नौकरी के इंटरव्यू में कभी भी सफल नहीं हो सकता है। खेती-बाड़ी करते समय ऐसे व्यक्ति को जुताई,बुआई, सिंचाई,कटाई,फसल बेचने तक में परेशान होना पड़ता है। धक्के मारकर सभी उसे पीछे धकेल देते हैं। नेताओं, धर्मगुरुओं, सुधारकों, शिक्षकों आदि के लिये ऐसे भोले-भाले लोग झूठे भाषण और प्रवचन सुनाने के काम आते हैं।चालाक और धूर्त किस्म के लोग तो नेताओं आदि से अपने काम निकलवा लेते हैं, लेकिन भोले-भाले लोगों का शोषण जारी रहता है। नेताओं, धर्माचार्यों, सुधारकों और उच्च अधिकारियों की तरह भोले-भाले लोग भी यदि धोखेबाज,छली,कपटी, झूठे, मौकापरस्त और मतलबी हो जायेंगे तो फिर इन उपरोक्त धूर्तों की धर्म, राजनीति, सत्संग,योग शिविर ,समाज सुधार की दुकानदारी बंद हो जायेगी।
एक अन्य प्रसंग में आचार्य चाणक्य कहते हैं ‘अमरवदर्थजातमाजयेत् ।।
अर्थवान सर्वलोकस्य बहुमत:।।
महेंद्रमप्यर्थहीनं न बहुमन्यते लोक:।।दारिद्र्य्ं खलु पुरुषस्य जीवितं मरणम्।।अकुलीनोपि कुलीनाद्विशिष्ट::!!
अर्थात् अपने आपको अमर समझकर धन का अर्जन करो।धनहीन इंद्र का भी कोई आदर नहीं करता है।धनहीन गरीब मनुष्य की जीते जी मौत हो जाती है। असभ्य होने पर भी धनवानों को सर्वत्र सम्मान मिलता है। पहले का समय हो या आजकल का समय हो, सम्मान पाने के लिये केंद्र में धन – दौलत मुख्य रहते आये हैं। इससे यह सिद्ध है कि भौतिक संसार में धन -दौलत ही सबसे बड़ी उपलब्धि है। जिसके पास यह नहीं है,उसका जीवन अभी और केवल अभी नर्क है। उसने मानवदेह में आकर सिर्फ अपने जीवन को व्यर्थ गंवा दिया है। भौतिक संसार में केवल धन- दौलत ही परमात्मा है। यदि किसी के पास धन दौलत है तो फिर उसको सर्वत्र सम्मान ही मिलेगा। लेकिन यदि किसी के पास धन दौलत नहीं है तो उसे सर्वत्र अपमान,प्रताड़ना, छुआछूत,गालियां, बदहाली आदि का सामना करना पड़ेगा। यदि आपके पास ऊंची ऊंची उपाधियां हैं, आपने सैकड़ों पुस्तकें लिख रखी हैं,आप प्रतिभाशाली हो, आप अखबारों में आर्टिकल लेखक हो,लेकिन आपके पास धनं- दौलत नहीं है,तो सच मानिये कि किसी गली का आवारा कुत्ता भी आपका सम्मान नहीं करेगा।वह भी आपको काटने दौड़ेगा। विद्या, बुद्धि, प्रतिभा, विद्वता आदि का कहीं कोई सम्मान नहीं है।इस तरह की बातें सिर्फ भोले-भाले और सीधे -साधे लोगों को एकतरफा ईमानदारी, निष्पक्षता, निष्ठा, मेहनत, पुरुषार्थ का पाठ पढ़ाकर उन्हें हर तरफ से लूला,लंगडा,बहरा और बंद बुद्धि बनाये रखकर भौतिक संसार की दौड़ से बाहर करना है।
ध्यान रहे कि सत्यवादिता, ईमानदारी, मेहनत, निष्पक्षता, करुणा, समर्पण, प्रेम, सम्मान, सौहार्द , भाईचारा, संतुष्टि , तृप्ति आदि आध्यात्मिक रूप से हर व्यक्ति के लिये लाभकारी हैं। ऐसा व्यक्ति अपने आपमें सदैव मस्त और आनंदमय रहता है। लेकिन ऐसा व्यक्ति अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, संतोष,तप, स्वाध्याय के सहयोग से भौतिक संसार में खुद की भौतिक तरक्की कभी नहीं कर सकता है।वह सदैव गरीब, बदहाल, असहाय,पिछडा हुआ, अपमानित और उपेक्षित ही रहता है। भौतिक संसार में आगे बढ़ने के लिये जिन अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जा है, वो अस्त्र-शस्त्र भोले-भाले व्यक्ति को नहीं मिलता है। इससे हताश करके अपने वर्तमान और भविष्य को कूड़ेदान में। डाल देंगे।
धोखेबाज़,लूटेरे,शोषक, झूठे और कपटाचरण करने वाले नेता, धर्मगुरु, सुधारक, उच्च अधिकारी, न्यायाधीश, पूंजीपति , प्रोफेसर, इंजीनियर, चिकित्सक आदि विभिन्न मंचों से मेहनत, ईमानदारी, निष्पक्षता, संयम, नैतिकता आदि के उपदेश पिलाकर जनमानस को बेवकूफ बनाते रहते हैं। क्योंकि ये जो विभिन्न मंचों से मोटे -मोटे उपदेश करते हैं,उन पर स्वयं नहीं चलते हैं।
आजकल के लूटपाट, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी,झूठ, कपट और छल के संसार में नेता, धर्मगुरु, सुधारक, योगाचार्य,संत, कथाकार, पूंजीपति, न्यायाधीश, उच्च -अधिकारी, प्रोफेसर, चिकित्सक आदि सभी के पास करोड़ों अवैध रुपये मिल रहे हैं लेकिन राजनीति, पुलिस और न्याय व्यवस्था में पहुंच होने के कारण इनका कुछ नहीं बिगडता है। इनके पास सीबी,आई ईडी और न्यायालय कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करता है। यदि किसी किसान, मजदूर आदि के पास थोड़ा बहुत कैश भी मिल जाये तो उसे तुरंत जेल भेज दिया जाता है। पुलिस, कानून, न्यायालय, सीबीआई,ईडी आदि केवल उच्च पहुंच वाले धनी -मानी लोगों की सुरक्षा के लिये तैनात रहते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में ठीक ही कहा है कि ‘दुनिया ठगिये मक्कर से, रोटी खाईये घी शक्कर से’।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र- 136119

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