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10 Apr 2025 · 1 min read

पढ़ के रोते हो , पढ़ाते क्यों नहीं आखिर !

ग़ज़ल
1…
पढ़ के रोते हो , पढ़ाते क्यों नहीं आखिर !
वो पुराने ख़त जलाते क्यों नहीं आखिर !
2..
कौन सा है दर्द जो तुम ने छिपाया है !
हाल दिल का वो सुनाते क्यों नहीं आख़िर!!
3..
लूट कर ले जायेंगे सब ज़िन्दगी का सुख !
ऐसे लोगों को भगाते क्यों नहीं आखिर !!
4..
उलझनों के साथ जी कर हाथ आया कुछ !
कशमकश अपनी बताते क्यों नहीं आखिर !!
5..
नींद भी नाराज़ होकर रोज़ खो जाती !
यार मोबाइल हटाते क्यों नहीं आखिर !!
6..
‘नील’ तारों से भरा ये आसमाँ रौशन !
रात आंगन में बिताते क्यों नहीं आखिर !!

✍नील रूहानी,,

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