भूल जाता हूँ कौन हूँ मै

जब बात मै उससे करता हूँ,
तो भूल जाता हूँ कौन हूँ मै।
जब बात मै उससे करता हूँ,
तो भूल जाता हूँ कौन है वो।
बस याद रह जाता है, कौन थे हम।
तब याद आती हैं वो लड़कपन की बातें,
वो अठखेलियां, वो गुदगुदाते अहसास।
जो बनाते थे आप को, किसी के लिए ख़ास।
तब याद आतीं हैं, वो उभरती ख्वाहिशें।
किसी का साथ, पाने की फरमाइशें।
वर्तमान में दस्तक देती हैं, जब ये बातें।
रास्ता रोक के खड़ी हो जाती हैं, वो भूली बिसरी यादें।
बड़ा मुश्किल होता हैं, करना उनका सामना।
जैसे बंद आँखों से, देखना हो कोई आइना।
चाहतें अभी भी है, की काश उसी लड़कपन में खो जायें।
कुछ वक़्त के लिए ही सही, किसी के हो जायें।
ये झूठ ही सही, पर दिल को सुकून देता है।
उसका मिलना ही, मेरे होने का वजूद देता है।
काश समझा पाता कोई, मेरे हाले दिल का मंजर।
जख्म गहरे थे, जो पैना था वो वक़्त का खंजर।
अब वो ही दवा देगी, तो चैन आयेगा।
मेरा हमदम मेरा साथी, जब मुझे मिल जाएगा।