प्रकृति की पुकार
कटते वन और मिटते जंगल,
वन्य-जीव का क्या होगा ।
चिड़ियाघर मे रखे इन्हे हम,
ये कहा का इनसे न्याय होगा ।।
बुलन्द करे आवाज हम अपनी,
वरना इन जीवो का क्या होगा ।
विकास करो तुम चाहे जितना,
पर सोचो प्रकृति का क्या होगा ।।
प्रकृति से खिलवाड ठीक नही,
हे! मानव बिन इनके तेरा क्या होगा ।
संतुलन अगर बिगड़ा प्रकृति का,
तो फिर धरती माँ का क्या होगा ।।
हैदराबाद के ये कटते जंगल,
वन्य-जीवो का फिर क्या होगा ।
जल, जंगल और जमीन पुकारे,
मानवता का फिर क्या होगा ।।
पुकार रहे हैं प्रकृति प्रेमी,
विकास का ऐसे क्या होगा ।
समा रहे हम काल गाल मे,
जीवन का अपने क्या होगा ।।
पुकार रहे है जीव जन्तु सब,
ललकार सभी का क्या होगा ।
चित्कार उठेगी प्रकृति सारी,
हे! मूर्ख प्राणी तेरा क्या होगा ।।
ललकार भारद्वाज