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8 Apr 2025 · 1 min read

#सूफ़ियाना_ग़ज़ल-

#सूफ़ियाना_ग़ज़ल-
■ रोज़ छिड़ती है इक बहस मुझमें…!!
【प्रणय प्रभात】

★ मैं हूँ तुझमें या तू है बस मुझमें?
मैं क़फ़स में हूँ या क़फ़स मुझमें??

★ नूर, खुशबू, छुअन सभी उसकी।
जो समाती है हर नफ़स मुझमें।।

★ गर्म साँसों से ख़्वाहिशें दहकीं।
यूं तो संदल, गुलाब, ख़स मुझमें।।

★ ले गया मेरा सब चुरा कर वो।
रह गया जो कई बरस मुझमें।।

★ मैं ही मज़लूम, मुजरिमो-मुंसिफ़।
रोज़ छिड़ती है इक बहस मुझमें।।

★ कल यहीं महफ़िलें मचलती थीं।
आज सब कुछ तहस-नहस मुझमें।।

★ वो समझता है शिकस्ता लेकिन।
अब भी बाक़ी है कुछ अनस मुझमें।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊

#जटिल_शब्दार्थ-
कफस/बंदीगृह, नफ़स/सांस, संदल/चंदन, मुंसिफ़/न्यायकर्ता, मज़लूम/ पीड़ित, अनस/अविनाशी, अनश्वर
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)

1 Like · 34 Views
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