Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Apr 2025 · 13 min read

सिद्धार्थ से बुद्ध: ज्ञान की यात्रा। ~ रविकेश झा

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और पूर्ण स्वस्थ होंगे। और निरंतर ध्यान में भाग ले रहे होंगे और सभी में प्रेम करुणा बांट रहे होंगे। जब आप पूर्णता के ओर बढ़ते हैं तब आप पूर्ण हो जाते हैं और जिज्ञासा भी समाप्त होने लगता है। हम कुछ और हो जाते हैं कुछ भिन्न पहले जैसे नहीं रहते बर्ताव में बदलाव हो ही जाता है आप क्रोध घृणा ईर्ष्या वासना से परे उठ जाते हैं आप कुछ अलग देखते हैं सबको एक सम्मान देखने लगते हैं। बिना द्वेष के जीने लगते हैं कोई भ्रम नहीं रहता है जीवन में जो भी रहता है स्पष्ट रहता है। स्पष्टता दिखाई देने लगता है फिर हमें कुछ मानना नहीं होता है जो भी घटित होता है हम उसके बस साक्षी बन जाते हैं हो जाते हैं देखते रहते हैं बस गवाह के तरह। बीच में बाधा नहीं बनते बल्कि जो हो रहा है उसमें एक हो जाते हैं कुछ बचता नहीं है फिर बस देखने वाला देख रहा होता है एकदम स्थिर। सृष्टि और सृष्टा एक हो जाता है लेकिन ये मानने से नहीं भाव से नहीं बल्कि होश से स्पष्ट रूप से न कि अंधेरे में न कि मूर्छा में होश के साथ प्रकाश के साथ हम शून्यता में एक हो जाते हैं। लेकिन उसके लिए आंख पर काम और प्रयोग करना होगा, मैं निष्पक्ष ध्यान को लॉन्च किया है ये मेरा अपना है कुछ बातें अतीत से लिया गया है लेकिन मैं भी इस पर शोध किया है ये हमें सरलता के ओर ले जाता है न कि जटिलता के ओर। ध्यान सभी कर रहे हैं लेकिन सब पहुंच नहीं रहे हैं बल्कि कुछ पकड़ लेते हैं। कुछ साधना के लिए तो कोई किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए सब धंधा खोल लिए हैं ध्यान साधना का अंग है मंज़िल नहीं ध्यान उपकरण है होश है, साधक पर निर्भर करता है कुछ बनना है या मात्र होना है बस मौन रहना है या सार्थक काम करना है या व्यक्तिगत लाभ के लिए। हम अक्सर ध्यान को गंदे नज़र से देखते हैं क्योंकि कुछ लोग अपना बस नाम बनाने में लगे हुए हैं, ध्यान में पीएचडी और बस हीलिंग करना है। डॉक्टर बनना है उन्हें धर्मगुरु भी। इसीलिए आज ध्यान कोचिंग तक पहुंच गया है लेकिन घर तक नहीं। चलिए आप लोग स्वतंत्र होकर ध्यान केंद्रित करते रहे और बढ़ते रहे। स्वतंत्र होना होगा निष्पक्ष देखना होगा। आज बात कर रहे हैं भगवान बुद्ध का जो कि एक महान दार्शनिक आध्यात्मिक गुरु और वैज्ञानिक के रूप में हम सब आज उन्हें देखते हैं। भगवान बुद्ध आकाश है अगर आप उन्हें जानने का प्रयास करोगे बस तो उन्हें खो दोगे वह हृदय उनका समुंद्र के तरह विशाल है लेकिन हम सब उनको नास्तिक के रूप में देखते हैं और उन्हें नास्तिक मान चुके हैं लेकिन सोचो नास्तिक व्यक्ति प्रेम करुणा का बात भी कर रहे हैं जानने का भी साधन बता रहे हैं फिर वह आस्तिक भी हुए ना लेकिन हम सब कुछ उनके शब्द पढ़ लिए है और उन्हें मान्यता देना आवश्यक था हमें कुछ नाम देना होता है संज्ञा देना होता है भगवान को भी संज्ञा देने लगते हैं। भगवान पांच तत्व से बना है अब जरूरी नहीं है कि व्यक्ति हर तत्व का प्रयोग कर के दिखाए वह भी भौतिक सुख के लिए, भौतिक से परे है गौतम बुद्ध, बुद्ध सब कुछ जानते थे इसीलिए मौन थे किसी के पक्ष के कारण मौन नहीं थे। भारत के विद्वानों ने उस समय और आज भी उन्हें नास्तिक दार्शनिकों के रूप में याद किया जाता है। वह ईश्वर को मानने वाले के लिए भिन्न बातें करते थे और जानने वाले के लिए अलग, ताकि आस्तिक नास्तिक हो सके और नास्तिक आस्तिक लेकिन जब तक हम पूर्ण नास्तिक नहीं होंगे तब तक हम पूर्ण आस्तिक भी नहीं होंगे, भौतिक सुख के कारण हम राय बदल लेंगे दुखी होंगे क्रोधी भी और फिर बोलेंगे प्रभु क्यों नहीं कर रहे हैं कुछ। इसीलिए उन्होंने नास्तिक पर ज़ोर विशेष दिया।

सिद्धार्थ का अर्थ होता है पूर्ण जो सिद्ध हो गया जिसका अब तोड़ नहीं कुछ जो अब एक हो गया। सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा गहन परिवर्तन और ज्ञान की कहानी है। कपिलवस्तु के राज्य में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के रूप में जन्मे, उन्हें उनके पिता, शुद्धोधन ने जीवन के कष्टों से बचाया था, उन्हें हर सुख दिया जो उन्हें चाहिए था भौतिक सुख सब मिला चाहे वह राज्य सुख भोजन हो स्त्री हो या अन्य भोग। उन्होंने सब कुछ किया और यही कारण है कि उन्हें भौतिक सुख से मन ऊब गया मन में प्रश्न सब उठने लगा। क्योंकि उन्हें सब कुछ मिला विरासत में मिला तो रस कम होने लग गया था रथ पर एक दिन राज्य में यात्रा के लिए निकले। और उन्हें व्यर्था दिखाई पड़ने लग गया था, वह कभी पुराने वस्तु के तरफ देखे नहीं थे देखना शुरू किया अचंभित हुए। प्रश्न उठना शुरू हुआ ऐसे क्यों होता है होता क्यों है। लेकिन हम लोग आज प्रश्न नहीं उठाते हैं देखते भी नहीं ठीक से आंख खोलते भी नहीं। व्यर्थ दिखाई भी नहीं पड़ता क्योंकि बेहोशी में घटना घटता है अंधेरे में भोग करते हैं। उन्होंने प्रश्न पर प्रश्न उठाए वह शरीर से मन तक पहुंच गए थे अब उन्हें मन से आत्मा तक का रास्ता तय करना था। पिता को उम्मीद था कि सिद्धार्थ को जीवन की कठोर वास्तविकताओं को देखने से रोका जा सकता है, लेकिन इन प्रायसों के बाबजूद, महल की दीवारों से परे की दुनिया के बारे में सिद्धार्थ की जिज्ञासा और भी प्रबल हो गई। युवा राजकुमार के रूप में, सिद्धार्थ ने विलासिता और विशेषाधिकार का जीवन जिया। हालांकि, उन्हें असंतोष और बेचैनी की गहरी भावना महसूस हुई। वह अस्तित्व की वास्तविक प्रकृति और मानवीय पीड़ा के मूल कारणों को समझने की इच्छा से प्रेरित थे।

29 वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ महल के द्वार से आगे निकल गए, जहां उन्हें चार दृश्य मिले, जिन्होनें उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। इन दृश्यों में एक बूढ़ा व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत शरीर और तपस्वी भिक्षु शामिल थे। पहले तीन दर्शनों ने बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु की अनिवार्यता को प्रकट किया, जबकि चौथे दर्शन ने आध्यात्मिक त्याग के माध्यम से आशा की एक झलक पेश की। इन मुलाकातों ने सिद्धार्थ की चेतना को दुनिया में व्याप्त दुखों के प्रति जागृत किया। उन्होनें महसूस किया कि सांसारिक सुखों की कोई भी मात्रा उन्हें जीवन की नश्वरता और दर्द से नहीं बचा सकती। मानव दुखों का समाधान खोजने के लिए दृढ़ संकल्पित, सिद्धार्थ ने अपने शाही जीवन को त्याग दिया और आध्यात्मिक खोज शुरू कर दी। उन्होंने शुरू में प्रसिद्ध शिक्षकों से मार्गदर्शन मांगा और अत्यधिक तपस्या का अभ्यास किए, जैसा बोला गया वैसे किए निस्वार्थ भाव से , यह विश्वास करते हुए कि आत्म त्याग से आत्मज्ञान प्राप्त होगा, वह बीच में बाधा नहीं बने जैसा कहा गया वैसे वैसे करते गए विरोध नहीं, समर्पण भाव पूर्ण था। वर्षो के कठोर अभ्यास के बाद, उन्होनें स्वयं को शारीरिक रूप से कमजोर और आध्यात्मिक रूप से अधूरा पाया। यह महसूस करते हुए कि न तो भोग और न ही अत्यधिक तपस्या सच्ची मुक्ति प्रदान करती है, जैसा कहा गया वैसे करते गए। नदी पार करते समय उन्हें दिखाई दिया ये मैं क्या कर रहा हूं मुझसे एक छोटी सी नदी नहीं पार कर रहा हूं फिर परमात्मा तक कैसे पहुंचेंगे शरीर ही नहीं रहेगा तो जानेंगे कैसे, मैं स्वयं को तबाह कर रहा हूं वीना के तार पर भी नजर गया और अंत में सिद्धार्थ ने मध्य मार्ग अपनाया जो आत्म भोग और आत्म पीड़ा के बीच संयम का मार्ग था। इस दृष्टिकोण ने अंततः उन्हें बोधगया पहुंचाया, जहां वे बोधि वृक्ष के नीचे गहन ध्यान में बैठे और तब तक न उठने की कसम खाई जब तक उन्हें पूर्ण ज्ञान पाप नहीं हो जाता। 49 दिनों के ध्यान के बाद, सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई, वे सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए जागृत व्यक्ति हो गए। उन्होंने दुख की प्रकृति और मुक्ति के मार्ग के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त की। उन्होंने जो मुख्य शिक्षाएं प्राप्त कीं, वे चार सत्य और आर्य आष्टांगिक मार्ग में समाहित हैं। उन्होंने अपने विचार से लोगों को प्रभावित किए जिसमें से आनंद, चन्ना, पूर्ण, महाकाश्यप, सुभूति, उपाली, और अंगुलिमाल और बहुत, अंत में उनके पत्नी और पुत्र राहुल भी उनके विचार पर चलने लगे। चार आर्य सत्य दुख की वास्तविकता, उसके उद्गम, इसके निवारण और उसकी निवारण की ओर ले जाने वाले मार्ग को रेखांकित करते हैं। आर्य आष्टांगिक मार्ग नैतिक आचरण, मानसिक अनुशासन और ज्ञान के लिए व्यवहारिक दिशा निर्देश प्रदान करता है, जो व्यक्तियों को आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाता है। नए ज्ञान के साथ, बुद्ध ने वास्तविकता की प्रकृति और दुख से मुक्ति के मार्ग के बारे में अपनी अंतर्दृष्टि के बारे में दूसरों को बताना शुरू किए। सारनाथ में उनके पहले उपदेश ने धर्म चक्र को गति दी, जो उनके शिक्षण करियर की शुरुआत थी। बुद्ध की शिक्षाएं आंतरिक शांति और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक घटकों के रूप में करुणा, सचेतना और समझ पर जोर देती हैं। उनकी विरासत दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती है, जीवन के सभी पहलुओं पर लागू होने वाले कालातीत ज्ञान की पेशकश करती है। बुद्ध की शिक्षाएं समय और भौतिक भूगोल से परे हैं, और विविध संस्कृतियों और दर्शन को प्रभावित करती हैं। आज, बौद्ध धर्म एक प्रमुख विश्व धर्म है जिसके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं जो अपने दैनिक जीवन में इसकी शिक्षाओं के अनुसार जीने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा, तनाव कम करने और व्यक्तिगत विकास के लिए आधुनिक समाज में सचेतनता और ध्यान के सिद्धांतों ने व्यापक लोकप्रियता हासिल की है।

राजकुमार से प्रबध शिक्षक तक बुध की यात्रा आज भी गूंजती है, जो गहरे अर्थ और पूर्णता की तलाश करने वालों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है। चाहे वह दलित सुजाता के खीर को ग्रहण करना उंगलीमाल को हिंसा से अहिंसा पथ पर लाना या भाई और विरोधी के बात को जानते हुए मौन रहना। कितने बार उन्हें भौतिक शरीर को कष्ट देने का प्रयास किया गया लेकिन वह फिर भी चलते रहे और लोगों को ध्यान और निर्वाण प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते रहे। जब आप उनकी कहानी जागरूकता के साथ पढ़ोगे तब आप आनंदित भी होगे लेकिन दुखी भी। क्योंकि यहां भौतिक दुख सबको सहना पड़ता है कोई भी हो। कुछ न कुछ सबको चाहिए खोज सबको करना है। चाहे वह कोई भी हो। भगवान बुद्ध को हम बस एक नास्तिक मानते हैं जहां कुछ पढ़ लिए बस मानते चले गए, प्रश्न नहीं उठाए इसका एक कारण है कि आपसी सहमति और दूसरा संदेह यही दो कारण से हम बुद्ध को पूर्ण जान नहीं पाए, नहीं तो आज पूरे एशिया बुद्ध के वचन को फॉलो करते हैं बुद्ध बन गए बहुत, लेकिन भारत ने स्वीकार नहीं किया अतीत में लेकिन आज कल भिन्न भिन्न धर्म के लोग भी बुद्ध को मानते हैं उसका कारण आप भी जानते हैं। सबको एक बराबर देखने का कुछ उनके विचार हमें पसंद आता है। या तो हम भगवान मान लेते हैं या संदेह में जीते हैं दो ही रास्ता है हमारे पास अंबेडकर जी ने देखा उन्हें बौद्ध धर्म पसंद आया वह अंबेडकर जी निर्देशक थे वह दलित सबको एक साथ और एक सम्मान दिलाना चाहते थे उन्हें बुद्ध का वचन पसंद आया पहले उन्हें अन्य धर्म के विचार भी पसंद आया था लेकिन उन्हें बदलना था न कि रूपांतरण उन्होंने आखिरकार बुद्ध को स्वीकार किया। लेकिन वह बदलने में विश्वास करते थे न कि रूपांतरण पर। हम सब कुछ अर्थ निकाल लेते हैं और फिर बदलने लगते हैं हम ही हैं कोई एक मन में जी रहा है कोई दूसरे मन में बदलना किसको है और बदल कर क्या होगा बस घृणा क्रोध संदेह रूपांतरण में हम सब एक हो जाते हैं शून्यता तक पहुंच जाते हैं मन के सभी भागों से अवगत हो जाते हैं। बदलने से घृणा क्रोध पैदा होगा रूपांतरण से शांति करुणा प्रेम। आप पत्ते काटने में लग जाते हैं न कि जड़ में जाते हैं, पत्ते काटेंगे फिर आ जायेगा और दूसरे पेड़ से घृणा करेगा या झंझट खड़ा होगा या ईर्ष्या या घृणा लेकिन जड़ में जाने से हम सभी डाली से परिचित होंगे देख लेंगे उसके लिए अंदर आना होगा जड़ में जाना होगा और हम बस परिधि को साफ़ करने में लग जाते हैं। पत्ते में पानी देने लगते हैं। शरीर में विरोध नही होगा मन में होगा दूसरे को घृणा क्रोध के नजर से देखने लगेंगे संदेह अलग बात है घरों क्रोध अलग, विरोध घृणा में अंतर है। आप वह इन्द्रियां का उपयोग कर रहे हैं आप दूसरे इन्द्रियां से काम तो काम है, कोई शरीर से कोई मन से कर्म तो कर्म है, सोचना विचारना भी कर्म है और भोजन करना भी चलना भी। लेकिन हम बदलने लगते हैं बदलेंगे तो बदला लेना चाहेंगे रूपांतरण में प्रेम स्वयं बढ़ जायेगा कहने की आवश्कता नहीं होता। आप को एक विचार पसंद नहीं आया कामना पसंद नहीं आया करुणा पसंद आया पसंद आया ना, बदला गए, जब ही एक को चुनेंगे तो दूसरे को छोड़ेंगे घृणा होगा क्रोध होगा कोई कारण से ही न छोड़े होंगे कारण नहीं होता तो छोड़ते क्यों। हम सब अंदर से एक है बाहर से अनेक जो ये बात जान लिया वह भीड़ में भी एक रहेगा भीड़ उस पर हावी नहीं होगा। लेकिन हम सब बस बदलने पर जोर देते हैं, रूपांतरण पर देना आवश्यक होगा।

बुद्ध हमें डॉक्टर और वैज्ञानिक के तरह मालूम पड़ते हैं और यह सत्य भी है लेकिन जो दिखता है आवश्यक नहीं कि वास्तव में वह सत्य हो सत्य को सूक्ष्म से भी देखना होगा हम भौतिक पर निर्भर हो जाते हैं। डॉक्टर को आप पूर्ण भगवान कैसे बना देंगे पूर्ण नास्तिक से ही पूर्ण आस्तिक हुआ जा सकता है। और कोई रास्ता नहीं, हम सुनते कहां हम अनुभव पर कहां उतरते हैं बस निर्णय कर लेते हैं। जो जानेगा नहीं वो पूर्ण निर्णय कैसे करेगा फिर हम शर्मिंदा होते हैं या क्रोध से उत्तेजित, घृणा सोचते हैं हमारे अनुकूल जो बात हो वह सही दूसरे से हमें क्या मतलब है। लेकिन हम ऐसे में जीते जी जीवन को तो जान नहीं पाते मृत्यु के समय फिर भय लगता है क्योंकि कुछ पता होता नहीं, भविष्य तो पता नहीं आगे क्या होगा कैसे भी मर जाते हैं। जीवन के चक्र को बिना जाने हम आगे चलते रहते हैं और ये चक्र चलता रहता है हम पूर्ण स्थिर नहीं हो पाते। हम पूर्ण सुनते नहीं क्योंकि अतीत सामने आ जाता है उससे छुटकारा नहीं मिलता या भय में जीने लगते हैं। जीवन हमें डराने लगती है हम सोचते हैं जो चल रहा है वह सही ही होगा चलते रहना चाहिए ऐसे ही बस। लेकिन भविष्य से हमें भय लगने लगता है क्योंकि सांसारिक सुख के लिए साधन जुटाने में लग जाते हैं लेकिन आंतरिक का कुछ पता नहीं रहता बहुत तो सांसारिक जीवन में सुख नहीं पूर्ण भोग पाते क्योंकि उन्हें उतना धन नहीं रहता इसलिए वो अंदर की बात सोचते भी नहीं क्या होता है आंतरिक ख़ोज या आध्यात्मिक जीवन, वह बस चलते रहते हैं। लेकिन जो बाहर सफलता हासिल कर लेते हैं वो सोचते हैं क्योंकि वो आंख को दौड़ाते है खोजते हैं कुछ पढ़ते हैं सभी को, वो भी सोचते हैं लेकिन आस्तिकता और भय उन्हें डराने लगती है। वह अधिक नहीं जाते लेकिन जो हिम्मत और साहस करते हैं वह ध्यान अभ्यास करने लगते हैं और धीरे धीरे उन्हें शून्यता का झलक दिखाई देने लगता है।

यदि व्यक्ति पूर्ण जागरूक के पथ पर चल रहा है तो नहीं तो कई जन्म लग जाता है हमें पूर्ण मुक्ति में क्योंकि हम ध्यान नहीं देते पूर्ण खोज नही करते इधर उधर में जीवन को ले कर चले जाते हैं। और जो खोजी होते हैं जो जानने में लग जाते हैं चाहे जान लग जाए चाहे धर्म चाहे संबंध चाहे पद नाम प्रतिष्ठा, वो जानने में लग जाते हैं और अंत तक स्वयं को खोज लेते हैं कौन हूं क्यों हूं क्या हूं सब जानने लगते हैं फिर वह शून्य हो जाते हैं न फिर उन्हें प्रतिष्ठा की चिंता न कोई लोभ न भोग में लिप्त न कोई दिक्कत निष्काम में उतर जाते हैं यदि समाधि नहीं लेंगे तो, नहीं तो जीवन वो भी जीते हैं। लेकिन आम लोग के तरह नहीं वह पूर्ण धार्मिक हो जाते हैं उन्हें आनंद की वर्षा होने लगता है उन्हें शुद्ध चेतना मिल जाता है बिंदु मिल जाता है परमात्मा मिल जाता है फिर उन्हें कुछ खोजने की विशेष आवश्कता नहीं होती। क्योंकि वह सब कुछ पा लेते हैं संसार में रहकर वो शून्य से जुड़े रहते हैं उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है यदि वह पूर्ण योगी है तो पूर्ण धार्मिक है तो। नहीं तो उन्हें क्रोध आ जाएगा उन्हें भय लगेगा, फिर वह भागने में या कुछ लोग के साथ प्लान करके सामने वाले को परेशान करने लगेंगे मौत से डरने लगेंगे पूर्ण नहीं जागे होंगे वो। लेकिन हम सब क्रोध पर विश्वास करते हैं सोचते हैं जो करेंगे वह सही ही होगा, लेकिन ऐसा आध्यात्मिक जीवन में नहीं होता है हम सोचते कुछ है अभी इसीलिए हमें सच्चाई पता नहीं चल पाता हमें जागना होगा यदि हमें पूर्ण धार्मिक होंगे। आप भगवान बुद्ध और उनके शिष्य पूर्ण की कहानी सुनी होगी, जब वो पूर्ण हो जाता है जान जाता है। लेकिन हम जानकर भी अनजान बन जाते हैं सोचते हैं लेकिन तुरंत भूल भी जाते हैं क्योंकि वासना हमें नहीं छोड़ती साहब हम करते कुछ है कहते कुछ है। ऐसे में जीवन में जटिलता के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगता लेकिन हम बस भागने लगते हैं क्योंकि हमें और भी कामना पूर्ण करना है अभी इसमें क्या रखा है कुछ नहीं है। निर्णय करने में हम माहिर हैं।

कुछ सोचते नहीं बस चलते रहते हैं। जी क्यों रहे हैं ये भी नहीं पता बस जीवन को कैसे भी खुश को खोजने में लगे हैं। कभी धन में कभी स्त्री में कभी पद नाम प्रतिष्ठा में लेकिन इससे परे कभी नहीं सोचते क्योंकि हम नीचे गिर जायेंगे न हमारा अंहकार गिर जाएगा न इसीलिए हम स्वयं की खोज में कम भक्ति में अधिक लग जाते हैं आसान लगता है। ऐसे में जीवन नहीं चलता यदि पूर्ण जानना है तो ध्यान में प्रवेश करना होगा आपको और परिणाम से अधिक कैसे हम मुक्ति की ओर बढ़े न की नियंत्रण की ओर दोनों में भेद है लोग नियंत्रण के लिए ध्यान करते हैं न की मुक्ति के लिए, इसीलिए उन्हें बीच से लौटना पड़ता है वह कुछ बुनियादी चीजों को जानकर जानने वाला बन जाते हैं। भय लगने लगता है क्या होगा ऐसे में उन्हें मुक्ति नहीं मिलता वो पूर्ण नहीं जानते उन्हें बीच में कुछ बाधा आने लगता है सोचते हैं अनुभव तो ऐसा नहीं हुआ क्योंकि हमें और अनुभव जो अंदर भर कर रखे हैं और तुलना करते हैं स्वयं के साथ वाह 🤣 में बड़ा या पद। ऐसा जीवन नहीं चलता हमें जागरूकता में जीवन को लाना होगा तभी हम पूर्ण संतुष्ट होंगे और जीवन को सरलता से जीने लगेंगे। भय से परे और वर्तमान से परे भी आप जा सकते हैं जहां शून्यता जहां दृश्य जहां बस होने में आनंद इससे आगे क्या कहे और कहा भी नहीं जा सकता। आपको स्वयं अनुभव करना होगा साहब यदि पूर्ण जानना है तो।

इतने ध्यान के साथ पढ़ने और सुनने के लिए हृदय से आभार, प्रणाम।

धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️,

845 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

प्रेम पाना,नियति है..
प्रेम पाना,नियति है..
पूर्वार्थ
बिड़द थांरो बीसहथी, चावौ च्यारूं कूंट।
बिड़द थांरो बीसहथी, चावौ च्यारूं कूंट।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
संत हृदय से मिले हो कभी
संत हृदय से मिले हो कभी
©️ दामिनी नारायण सिंह
मां
मां
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
सच तो हमेशा शांत रहता है
सच तो हमेशा शांत रहता है
Nitin Kulkarni
आत्महत्या
आत्महत्या
आकांक्षा राय
3326.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3326.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
अंत बुराई का होता है
अंत बुराई का होता है
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
झाड़ू खूब लगाई (बाल कविता)
झाड़ू खूब लगाई (बाल कविता)
Ravi Prakash
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
पंकज परिंदा
Way of the Water
Way of the Water
Meenakshi Madhur
यदि होना होगा, तो तूझे मेरा होना होगा
यदि होना होगा, तो तूझे मेरा होना होगा
Keshav kishor Kumar
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
डायरी के पहले पेज पर बना
डायरी के पहले पेज पर बना
दीपक झा रुद्रा
काली भजन
काली भजन
श्रीहर्ष आचार्य
होली खेलन पधारो
होली खेलन पधारो
Sarla Mehta
अबाध गति से गतिमान, कालचक्र चलता रहता है
अबाध गति से गतिमान, कालचक्र चलता रहता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
वादा
वादा
Bodhisatva kastooriya
रोबोटयुगीन मनुष्य
रोबोटयुगीन मनुष्य
SURYA PRAKASH SHARMA
Happy Sunday
Happy Sunday
*प्रणय प्रभात*
"" *हाय रे....* *गर्मी* ""
सुनीलानंद महंत
मेरे दिल का विश्वास तुमपर। कभी भुल मत जाना जानेजीगर।।
मेरे दिल का विश्वास तुमपर। कभी भुल मत जाना जानेजीगर।।
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
बारिश का है इंतजार
बारिश का है इंतजार
Shutisha Rajput
जनहरण घनाक्षरी
जनहरण घनाक्षरी
Rambali Mishra
तमन्ना
तमन्ना
Annu Gurjar
"कामयाबी"
Dr. Kishan tandon kranti
আমার ভালোবাসার শিব
আমার ভালোবাসার শিব
Arghyadeep Chakraborty
यथा नाम तथा न गुणा
यथा नाम तथा न गुणा
अमित कुमार
ग़ज़ल __ कुछ लोग झूठ बोल के , मशहूर हो गए।
ग़ज़ल __ कुछ लोग झूठ बोल के , मशहूर हो गए।
Neelofar Khan
सागर ने जब जब हैं  हद तोड़ी,
सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
अश्विनी (विप्र)
Loading...