*मनोविकार या…?*

#लघुकथा-
■ अदा, अकड़, आदत या कुछ और…?‘
[प्रणय प्रभात]
उसका नहाना-धोना हो चुका था। खाना-पीना भी निपट गया था। वो भी आम दिनों की तरह नहीं। सामान्य दिनों की अपेक्षा समय से पहले। आज जाना जो था एक धार्मिक उत्सव में। ड्राइक्लीन होकर आए कपड़े तन पर सुशोभित होने को आतुर थे। देह कुर्सी पर तो निगाहें दीवार घड़ी पर थी। बीते दिन की ही तो बात है।
टेबल पर रखे मोबाइल से पीं-पीं की आवाज़ आई। उसने अनमने मन से मोबाइल उठाया। मैसेज देखने के लिए व्हाट्सअप खोला। मैसेज के रूप में पर्व की बधाई के साथ एक संदेश था। उसी आयोजन में भागीदारी के अनुरोध के तौर पर। जिसमें भागीदारी की तैयारी सवेरे से चल रही थी।
तुनक-मिज़ाज मन विचलित सा दिखा। किसी के आग्रह या आमंत्रण को नकारने का आदी जो बन चुका था। बरसों के अन्तरदाह के चलते। अनुरोध या सलाह के विपरीत काम आत्मा को संतोष देता था शायद। पसंद आता था ज़माने की पसंद को नापसंद करना।
यह अदा थी, आदत थी, अकड़ थी या कोई मानसिक व्याधि, भगवान जाने। एक मनुहार ने झुलसे हुए मन पर मानो नमक सा छिड़क दिया था। वो भी अनचाहे, अंजाने। उल्टा सोचने व करने का अभ्यस्त मन अब मलीन था। खुली हवा की चाह में हुलसे हुए कपड़े हैंगर में फंसे हवा-रोधी वार्डरोब में क़ैद जा रहे थे। मनमर्ज़ी से नहीं, मन मसोस कर। एक झुलसे हुए मन के कारण।।
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#कथ्य-
वाम-मार्गी सिर्फ़ राजनीति में नहीं होते। ये सामाजिक, सार्वजनिक जीवन में भी पाए जाते हैं। यह मात्र विरोध के लिए विरोध कर आत्म-संतोष का आभास करते हैं व सदैव उल्टा चलने में शान समझते हैं। पहचान के लिए एक उदाहरण मेरी लघुकथा का इकलौता पात्र है। अब ऐसे किसी इंसान की पहचान करना आपका काम है।
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)