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8 Apr 2025 · 1 min read

01 यह रही एक सरल और भावनात्मक छत्तीसगढ़ी में प्रकृति पर कविता:

“मोर गौं के बिहान”
(मेरे गाँव की सुबह)

छोटे-छोटे डोंगरी, हरियर हरियर पान,
सुन-सुन लागथे मन ला, कोयली के तान।

धूप के किरन परथे, पथरा ऊपर नाचे,
नदी के ठंडा पानी, गोद मा जइसे सांचे।

मोर गौं के बगरिया, महकत फुल के बारी,
मोर मइया जइसे लागे, धरती के दुलारी।

गोरू-बइला गोठ मा, चरथे सुख के गीत,
मन हरष जाथे देख के, ये सुघ्घर प्रकृति के मीत।

बिहनिया के संग-संग, बांसुरी के सुर बाजे,
प्रकृति के ये मया, मोर आत्मा ला राजे।

✍️📜जितेश भारती

1 Like · 42 Views
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