दोहा पंचक. . . . . गर्मी
दोहा पंचक. . . . . गर्मी
शनै – शनै दिखला रहा, सूरज अपना रूप ।
थोड़ी अब तीखी लगे , प्रातःकाल की धूप ।।
सड़क किनारे अब हुई , पेड़ों की दरकार ।
राहगीर बस ढूँढता , छाया का संसार ।।
पंछी पानी ढूँढते, और ढूँढते छाँव ।
भानु ताप से अब तपें, उनके नन्हे पाँव ।।
मौसम की अठखेलियाँ, अजब दिखायें रंग ।
धूप- छाँव से आदमी, हरदम लड़ता जंग ।।
सीना ताने चल रहा, भानु गगन में आज ।
फाग गया सर्वत्र अब , छाया उसका राज ।।
सुशील सरना / 7-4-25