जब मुहब्बत ही कर लिया तो सोचना क्या है?

जब मुहब्बत ही कर लिया तो सोचना क्या है?
चलो चलें, कि ये जोखिम भी उठाया जाए।
चांँद रुसवा हो तो, रातों पे यूंँ इल्ज़ाम न दो।
चाहे जिस तौर हो सूरज को बुलाया जाए।
चलते –चलते तो यूंँ थकना भी लाज़मी है मगर
आब़ ए जिस्म से मिट्टी को भिगाया जाए।
एक तरफ मैं हूंँ ,शिकन है और तमाशा भी है…
जिस तरफ तुम हो वहांँ शाम सजाया जाए।
दीपक झा रुद्रा