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7 Apr 2025 · 1 min read

*बिछड़ रहे हैं संगी-साथी, जग दो दिन का मेला है(हिंदी गजल)*

बिछड़ रहे हैं संगी-साथी, जग दो दिन का मेला है(हिंदी गजल)
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1)
बिछड़ रहे हैं संगी-साथी, जग दो दिन का मेला है
दो कदम किसी के साथ चले, अगला कदम अकेला है
2)
एक दिवस सच्चाई कड़वी, जीवन की सब पाऍंगे
खेल-खिलौनों से ही कोई, बोलो कब तक खेला है
3)
बड़ी दुकानों पर अक्सर बस, ताम-झाम ही पाओगे
चाट-पकौड़ी का तो होता, सबसे बढ़िया ठेला है
4)
पूछ-पूछ कर हमने सबसे, अपना ज्ञान बढ़ाया था
आगे वही बढ़ा आजीवन, समझा खुद को चेला है
5)
जब जी चाहे जहॉं बैठकर, प्रभु का ध्यान लगा लेना
आत्म-तत्व की खोज करो तो, इसमें खर्च न धेला है
6)
बड़ा भाग्यशाली है वह जो, ध्यान-योग में चला गया
वर्णन कैसे कौन करेगा, प्रेम-तत्व अलबेला है
7)
मर जाना शायद अच्छा था, जिसे देखने से पहले
ऐसा भी परिदृश्य हमारी, ऑंखों ने कुछ झेला है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451

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