ज़ुल्म की इब्तिदा , ज़ुल्म की इंतिहा

ग़ज़ल
ज़ुल्म की इब्तिदा , ज़ुल्म की इंतिहा ,
जाने जाँ कर गए, मुस्कुरा कर रिहा।1/
तुम न तरसो , ये सूरज तुम्हारा भी है ,
यूँ किरन फैलती , जैसे हो इक निहा ।2/
सोच कर अब ये , बीमार होना ही है ,
ख़ुद की ख़ातिर ,जगा लो नई इश्तिहा।3/
मैल दिल का बहा दो मेरे साथियों,
ख़ुद की हालत को तू,कर नहीं बिमरहा।4/
शोर बरपा था चारों तरफ़ इस क़दर ,
नील ख़ामोश पढ़ती रही फ़ातिहा ।5/
✍️नील रूहानी…06/04/2025….