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7 Apr 2025 · 1 min read

ज़ुल्म की इब्तिदा , ज़ुल्म की इंतिहा

ग़ज़ल

ज़ुल्म की इब्तिदा , ज़ुल्म की इंतिहा ,
जाने जाँ कर गए, मुस्कुरा कर रिहा।1/

तुम न तरसो , ये सूरज तुम्हारा भी है ,
यूँ किरन फैलती , जैसे हो इक निहा ।2/

सोच कर अब ये , बीमार होना ही है ,
ख़ुद की ख़ातिर ,जगा लो नई इश्तिहा।3/

मैल दिल का बहा दो मेरे साथियों,
ख़ुद की हालत को तू,कर नहीं बिमरहा।4/

शोर बरपा था चारों तरफ़ इस क़दर ,
नील ख़ामोश पढ़ती रही फ़ातिहा ।5/

✍️नील रूहानी…06/04/2025….

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