/•• यक्ष प्रश्न ••/

//•••यक्ष-प्रश्न•••//
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” कोलकाता रेप काण्ड पर व्यथित मन से”
कवि चुन्नू लाल गुप्ता की कलम से —
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अम्बर के आंखों में आंसू,धरती कितना रोई है
हे जगदीश्वर यक्ष-प्रश्न,मानवता कहां पे सोई है
कलियों की मुस्कान छीनी है
सहमी-सहमी डाली है
रक्तबीज बढ़ रहें धरा पर
भयाक्रांत वनमाली है
शाख़-शाख़ ग़मगीन हुए हैं,टहनी-टहनी रोई है
हे जगदीश्वर यक्ष-प्रश्न,मानवता कहां पे सोई है
वसुधा को आनंदित करती
कली-कली मुस्काती थी
आकर्षित भौरों की टोली
आ मृदुल गीत गा जाती थी
गुंजित भौंरे निस्तब्ध हुए,जड़ों ने चेतना खोई है
हे जगदीश्वर यक्ष-प्रश्न,मानवता कहां पे सोई है
खग मृग के कोलाहल से
प्रकृति मुग्ध हो जाती थी
वाचाल हवाएं आकर के
मधुरिम सुगंध ले जाती थी
व्यथित हवाएं मौन हुई, कांटों ने बेली बोई है
हे जगदीश्वर यक्ष-प्रश्न,मानवता कहां पे सोई है
ऋतुएं करतीं श्रृंगार विविध
रजनी अमृत बरसाती थी
भोरहरि में ओंस की बूंदें
प्यास बुझाकर जाती थीं
सिसक रही पंखुड़ी-पंखुड़ी,बागों ने अस्मिता खोई है
हे जगदीश्वर यक्ष-प्रश्न, मानवता कहां पे सोई है
//••• कलमकार •••//
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.) ✍️