*पत्रिका समीक्षा*

पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: इंडियन थिऑसफिस्ट ,मार्च 2025, खंड 123 अंक 3
संपादक: प्रदीप एच. गोहिल
अनुवादक: श्याम सिंह गौतम
प्रकाशक एवं मुद्रक: रवि प्रकाश पांड्या द्वारा रेनबो प्रिंटर्स सिद्धगिरि बाग, वाराणसी में मुद्रित, प्रदीप एच. गोहिल द्वारा भारतीय अनुभाग थियोसोफिकल सोसायटी कमच्छा, वाराणसी 221010 यूपी इंडिया के लिए प्रकाशित
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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कुंभ के युग में प्रवेश
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वर्ष 2025 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन जहॉं अपनी दिव्यता और भव्यता के लिए विख्यात हुआ, वहीं इसने एकत्व की अनुभूति की दृष्टि से थियोसोफिकल सोसायटी के चिंतन को भी प्रभावित किया।
इंडियन थियोसॉफिस्ट मार्च 2025 खंड 123 अंक 3 वास्तव में 3 जनवरी 2025 को थिओसोफिकल सोसायटी के 149 वें अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन की अवधि में भारतीय सेक्शन के द्वितीय सत्र में प्रस्तुत किए गए लेखो का संग्रह है। अरुणिमा बरुआ (सुंदरपुर थियोसोफिकल लॉज, असम फेडरेशन की सदस्य) ने अपने लेख में इस तथ्य को रेखांकित किया है कि अब हम कुंभ के युग में प्रवेश करने जा रहे हैं। हम अपने को पूरे संसार से अलग करके नहीं बैठ सकते। हमारी यात्रा अकेलेपन से चलकर शेष संसार के साथियों के साथ होनी चाहिए। हम अपनी चेतना में निम्न स्व को उच्च स्व से तारतम्य में रखें और समस्त संसार में दूसरों के लिए कार्य करते रहें ।इसमें संदेह नहीं कि अरुणिमा बरुआ जी का लेख एकत्व की भावना को कुंभ से प्रेरणा लेकर थियोस्फफी के संदर्भ में सटीक रूप से प्रस्तुत कर रहा है। यह अपने को जानने की एक अद्भुत प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से हम अपने में सब को और सब में अपने आप को ढूंढने का कार्य करते हैं। कुंभ का उदाहरण इसी विचार-क्रम का एक कदम है। सुंदर संयोग यह है कि पत्रिका के इस अंक के चारों लेख अथवा यों कहें कि थियोसोफी अधिवेशन में प्रस्तुत किए गए चारों लेख इसी प्रश्न का उत्तर तलाश रहे हैं कि मैं कौन हूॅं।
अपने को कैसे जानें * स्मिता प्रज्ञान पात्रो का लेख है। जानना प्रेम करना है अरुणिमा बरुआ का लेख है। मैं कौन हूं मिलिंद जोशी का लेख है। तथा ज्ञान के माध्यम से आत्म साक्षात्कार सुषमा श्रीवास्तव का लेख है। इन सब लेखों की एक ही ध्वनि है कि सृष्टि के कण-कण से एकत्व की अनुभूति से ही आत्म साक्षात्कार संभव है। अच्छे लेखक अपने आसपास की गतिविधियों से उदाहरण लेते हैं और प्रेरणा स्रोत के रूप में अपने भीतर और सबके भीतर प्रवाहित करते हैं।
कहानियों के माध्यम से ज्ञान की बातें अगर लेख के बीच में आ जाती हैं, तो लेख कितना अधिक प्रभावशाली बन जाता है यह हम स्मिता प्रज्ञान पात्रो के लेख ‘अपने आप को कैसे जानें’ पढ़कर पहचान सकते हैं। भुवनेश्वर, उत्कल फेडरेशन की सदस्य ने ध्यान, समाधि और अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए एक जागरुक व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने एक कहानी प्रस्तुत की है जिसमें एक शिष्य अपने पुराने गुरु से मिलने गया तो गुरु ने पूछा कि तुमने अपनी छतरी को उतारे गए सैंडलों के दाहिनी ओर रखा अथवा बॉंई ओर रखा ? शिष्य जागरूक नहीं था। अतः उत्तर नहीं दे सका। ध्यान और समाधि हमें जागरुक बनाती है। यह एक-एक क्षण की क्रिया को बारीकी से आत्मसात करने की कला में हमें पारंगत बना देती है। इसलिए अरुणिमा बरुआ का कहना यह है कि आत्म-साक्षात्कार का मतलब माइंड और बॉडी की हलचल नहीं बल्कि आत्मा की स्तब्धता से कार्य करने में है। यह स्थिति हमें सब में एकत्व का प्रत्यक्षीकरण कराती है।
यह प्रश्न कि मैं कौन हूॅं मिलिंद जोशी ने अपने लेख का शीर्षक दिया है। आपने कर्मेंद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों आदि के शुद्धिकरण से आगे बढ़कर आत्म-तत्व की खोज की बात कही है। सतही तौर पर व्यक्ति की जो पहचान है, उससे ऊपर उठकर ही हम उच्च आत्म के स्तर का स्पर्श कर सकते हैं। मिलिंद जोशी के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर कि मैं कौन हूॅं- केवल आत्मबोध से ही दिया जा सकता है।
आत्मज्ञान के माध्यम से आत्म साक्षात्कार सुषमा श्रीवास्तव के लेख का विषय है। भगवद् गीता आदि के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आपने बताया है कि जो आत्मतत्व है, वह मनुष्य की कामनाओं से घिरा रहता है। इस सांसारिकता से जब तक बाहर नहीं आया जाएगा, आत्म-तत्व के दर्शन संभव नहीं हैं । शुद्ध विचारों, शुद्ध भावनाओं और शुद्ध क्रियाओं से ही हम भीतर ढके हुए सत्य को अनावृत कर पाते हैं।
पत्रिका का संपादकीय प्रदीप एच. गोहिल का लिखा हुआ है। शीर्षक है, आगे का एक कदम । इसमें विद्वान लेखक ने ज्ञान के मार्ग पर चलने का सबसे आसान रास्ता यह बताया है कि हम प्रतिदिन जो भी कार्य करते हैं, उसे पूर्ण मनोयोग से करें। आनंद लेते हुए करें। यह वृत्ति ही व्यक्ति को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर पाएगी।
अंक विचारोत्तेजक है। पत्रिका-परिवार को बधाई।