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1 Apr 2025 · 1 min read

पिता बिना है सूना पीहर ,सूना हर एक सावन है ।

पिता बिना है सूना पीहर ,सूना हर एक सावन है ।
खाली से खिड़की दरवाजे ,खाली घर का आंगन है ।
कोई नहीं अब जो राह निहारे ,कब बिटिया घर आएगी ?क्या तो बेटी पहनेगी और क्या अब बेटी खायेगी ?
देखे ना कोई मन की पीड़ा ,हर कोने में दर्पण है ।
पिता नहीं पर पिता का साया ढूंढ रहा मेरा मन है ।
कोई नहीं अब यहां ऐसा भरकर थैले में खुशियां ले आए ,
पूरी कर दे ख्वाहिश सारी दुनिया मेरी महकाए ,
यूं तो हैं यहां लोग बहुत से ,पर पिता बिना सूना जीवन है ।
खाली खाली है जग सारा ,खाली घर का आंगन है ।
कोई ना पूछे इच्छा मन की ,कोई ना अब कारण पूछे,
सिर पर कोई हाथ रखे ना ,ना कोई आंसू पोंछे ।
सीलीं सी हैं घर की दीवारें ,उतरे सब रंग रोगन हैं ।
पिता बिना है सूना पीहर ,सूना हर एक सावन है ।

मंजू सागर
गाजियाबाद

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