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3 Apr 2025 · 1 min read

रात सजी है चांद तारों से

रात सजी है चांद तारों से
हर तरफ टिमटिमाते तारे
कोई खुशियां ढूंढे महल चौबारों में
हम तो खुश हैं, देख आसमां के नजारे।

खुला आसमां है सिर पे मेरे
जमीन पर मिट्टी में मेरा बिस्तर
धूल सनी है कपड़ों पर मेरे
और बदन है पसीने से तर-बतर।

दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत
करती दो वक्त की रोटी का जुगाड़
रात में भीनी-भीनी चलती ठंडी पवन
चरमर करता वह टूटा हुआ किवाड़।

नींद टूट जाती है मेरी, रात में
भौंकते कुत्तों की सुन आवाजें
दूर तलक सुनसान पड़ी गलियां
और सब बन्द पड़े घरों के दरवाजे।

नहीं परवाह कि कौन गाड़ी आएगी
रौंद जाएगी सोए हुओं को टायरों तले
यही तो जीवन है एक गरीब का
है आज यहाँ तो कल कहीं ओर चले।

ना सुनती सरकार है कोई मेरी
ना कोई जज मेरी फरियाद सुनता
जब भी लगाता मैं कोई गुहार न्याय की
उल्टा अदालत में मैं ही सजा सुनता।

फिर भी बिंदास है जीवन अपना
ना कुछ पाने की इच्छा, ना खोने का डर
जो कमाया एक दिन की दिहाड़ी में
वो भी डाला उसी दिन खर्च कर।

पर सोचता हूँ कभी जीवन मेरा भी
हो खुशहाल धन दौलत से भरा
पर रुक जाते हैं कदम मेरे, ये सोचकर
मर जाती मानवता, मन नहीं रहता खरा।

@ विक्रम सिंह

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