वर्ष बीत गया

वर्ष बीत गया
सूर्योदय हुआ
फिर दिन बीत गया
शाम ढ़ल गई
बात थी मन की
मन में खल गई
आसमां भी नहीं गुंजा
वर्षा भी नही हुई
तिनका भी नहीं बुझा
वृक्ष बेवफा निकल गए
अब टुकड़ा-टुकड़ा याद रखुंगा
कितने सारे उकल गए
@जितेन्द्र कुमार ‘सरकार’