दोहा पंचक. . . . . दिल
दोहा पंचक. . . . . दिल
कब जुड़ता है टूट कर, दिल का टूटा काँच ।
जीवन भर बुझती नहीं, ऐसे दिल की आँच ।।
दिल धड़का दिल के लिए, हो बैठा बैचैन ।
तनहाई ऐसी बढ़ी, बरस पड़े ये नैन ।।
दिल टूटा दिल के लिए, दिल ही दिल कल रात ।
समझ न पाया दे गई, क्यों दिल को आघात ।।
दिल ने जब दिल को दिया, उल्फत का पैगाम ।
बोसों की बौछार में, शाम हुई बदनाम ।।
विस्मृत दिल से कब हुआ, प्रथम प्रणय आनन्द ।
जीवन से होता नहीं, ओझल वो मकरंद ।।
सुशील सरना / 29-3-25