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28 Mar 2025 · 1 min read

भाग्य भरोसे बैठकर, रोते क्यों हो कंत।

भाग्य भरोसे बैठकर, रोते क्यों हो कंत।
कर्म बदलते भाग्य को, कहते हरदम संत।।
संजय निराला

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