कितनी शिद्दत से तराशा था, सपनों का महल।

कितनी शिद्दत से तराशा था, सपनों का महल।
तुझको बुनियाद समझकर, आशियाने की।
तुझसे ऐतबार की इक ईंट भी, थामी न गई।
गुनहगार बनाया मुझको, बातों में आकर जमाने की।
श्याम सांवरा…..
कितनी शिद्दत से तराशा था, सपनों का महल।
तुझको बुनियाद समझकर, आशियाने की।
तुझसे ऐतबार की इक ईंट भी, थामी न गई।
गुनहगार बनाया मुझको, बातों में आकर जमाने की।
श्याम सांवरा…..