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27 Mar 2025 · 1 min read

कितनी शिद्दत से तराशा था, सपनों का महल।

कितनी शिद्दत से तराशा था, सपनों का महल।
तुझको बुनियाद समझकर, आशियाने की।

तुझसे ऐतबार की इक ईंट भी, थामी न गई।
गुनहगार बनाया मुझको, बातों में आकर जमाने की।

श्याम सांवरा…..

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