हाई कोर्ट ने महिला आत्म सम्मान को बढ़ाया

भारत में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान से जुड़े मामलों में न्यायपालिका की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। समय-समय पर विभिन्न न्यायिक फैसले यह स्पष्ट करते हैं कि किसी भी महिला की निजता और गरिमा के उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी भी महिला के अंगों को उसकी इच्छा के विरुद्ध छूना, चाहे किसी भी परिस्थिति में हो, न केवल अनैतिक बल्कि दंडनीय अपराध भी है।
यह फैसला भारतीय समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है। यह निर्णय सिर्फ कानूनी पहलू को नहीं दर्शाता, बल्कि यह भी बताता है कि अब महिलाओं के प्रति किसी भी तरह के दुर्व्यवहार को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
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फैसले की मुख्य बातें
1. निजता और गरिमा का उल्लंघन
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी महिला को उसकी सहमति के बिना छूना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार’ से संबंधित है, जो हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है।
कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति किसी महिला के शरीर को बिना उसकी सहमति के छूता है, तो यह सीधे तौर पर उसके आत्मसम्मान और गरिमा का हनन करता है।
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2. यौन उत्पीड़न की व्यापक परिभाषा
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) की परिभाषा केवल शारीरिक बलात्कार या अश्लील हरकतों तक सीमित नहीं है।
किसी भी महिला को जबरदस्ती छूना,
उसके शरीर को अनुचित तरीके से स्पर्श करना,
उसकी मर्जी के खिलाफ किसी भी प्रकार का शारीरिक संपर्क बनाना,
ये सभी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं। BNS, 2023 की नई धाराओं के अनुसार, ऐसे मामलों में अधिक कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
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3. भारतीय न्याय संहिता (BNS) के प्रावधान
इस फैसले में भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की विभिन्न धाराओं का हवाला दिया गया, जिनमें खासतौर पर शामिल हैं:
🔹 धारा 64 – महिला की गरिमा भंग करने का अपराध
यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की गरिमा भंग करने के इरादे से उस पर हमला करता है या बल प्रयोग करता है, तो यह गंभीर अपराध माना जाएगा।
इसमें 1 से 7 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
🔹 धारा 67 – यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
बिना सहमति के किसी महिला को अनुचित रूप से छूना, अश्लील इशारे करना या शब्दों के माध्यम से अपमानित करना इस धारा के अंतर्गत आता है।
इसमें 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
🔹 धारा 63 – बलात्कार (Rape)
यह धारा IPC की धारा 375 के स्थान पर लागू की गई है।
किसी महिला की सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आएगा।
इसमें कम से कम 10 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास का प्रावधान है।
अगर पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो सहमति का कोई महत्व नहीं होगा, और अपराधी को कठोरतम सजा दी जाएगी।
🔹 धारा 69 – सामूहिक बलात्कार (Gang Rape)
यदि दो या अधिक लोग किसी महिला के साथ बलात्कार करते हैं, तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकती है।
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4. कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कार्यस्थलों, शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
2013 के यौन उत्पीड़न (Prevention, Prohibition & Redressal) अधिनियम के तहत, कार्यस्थलों पर महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने के लिए सख्त प्रावधान हैं।
हालांकि, इनका प्रभावी क्रियान्वयन अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।
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5. पीड़िताओं को न्याय दिलाने पर विशेष जोर
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अक्सर महिलाएं समाज के डर, बदनामी और कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायत दर्ज नहीं कर पातीं।
न्यायपालिका का यह दायित्व बनता है कि वह महिलाओं को न्याय दिलाने की प्रक्रिया को सरल और निष्पक्ष बनाए।
सरकार को जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, ताकि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहें और किसी भी प्रकार की हिंसा के खिलाफ खुलकर आवाज उठा सकें।
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इस फैसले का समाज पर प्रभाव
✔ महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा – वे अपने अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक होंगी और किसी भी प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा मिलेगी।
✔ अपराधियों में भय उत्पन्न होगा – कड़ी सजा का प्रावधान होने से संभावित अपराधियों में कानून का डर बढ़ेगा, जिससे ऐसे अपराधों की संख्या में कमी आ सकती है।
✔ संस्थानों पर जवाबदेही बढ़ेगी – कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा उपायों को लेकर अधिक जवाबदेही तय की जाएगी, जिससे महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित होगा।
✔ कानूनी प्रक्रिया सशक्त होगी – यह फैसला अन्य अदालतों के लिए मिसाल बनेगा और भविष्य में ऐसे मामलों में सख्त फैसले लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा।
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निष्कर्ष
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निर्णय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि महिलाओं की गरिमा और सम्मान के साथ किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार्य नहीं है।
✅ BNS, 2023 के तहत महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा को पहले से अधिक मजबूती दी गई है।
✅ अब यह सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इस निर्णय की भावना को समझें और एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में आगे बढ़ें, जहां हर महिला निडर होकर अपनी जिंदगी जी सके।