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26 Mar 2025 · 1 min read

बदलता परिवेश

जिस परिवेश में जीना था अमल करना छोड़ दिया
जिन संस्कारों में पले बड़े उन्हें सिखाना छोड़ दिया

ईश्वर के वरदान को बेकार समझ कर छोड़ दिया
जिन्हे करना था पशुपालन हल चलाना छोड़ दिया

मिट्टी के बर्तन में खाना पीना अब सबने छोड़ दिया बदलता परिवेश हमारा क्यू संस्कृति को छोड़ दिया

पिताजी के ऋण को ओलाद ने चुकाना छोड़ दिया
माता पिता की सेवाभाव क्यू बहु बेटों ने छोड़ दिया

चोरी करना शुरू किया ईमानदारी को त्याग दिया
शौहरत दौलत के चक्कर में सच्चाई को त्याग दिया

धर्म परिर्वतन करके अब कुलदेवी को त्याग दिया
अपने मकसद के लिए माता पिता को कत्ल किया

पढ़े लिखे लोगो ने भी अब शिक्षा का व्यापार किया
मजबूर दुखी लोगों को अधिक सताना शुरू किया

अपने स्वार्थ के खातिर सैनिक बनना छोड़ दिया
जिन भावो से पले बड़े उन कसमों को तोड़ दिया

सत्यवीर वैष्णव
बारां💞✒️💞

Language: Hindi
2 Likes · 35 Views
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