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27 Mar 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . विविध

अपने ही दुश्मन बने, औरों की क्या बात ।
अपनेपन की धुंध में, मिले कई आघात ।।

ऐसे तो बनते नहीं, जग में सभी महान ।
करना पड़ता हैं बहुत, पापों का संधान ।।

अर्थ लोभ में जिंदगी, ऐसी लिपटी आज ।
जली कोपलें भाव की , कुंठित हुआ समाज ।।

माना जीवन चक्र का, बदल गया है रूप ।
हर कोई अब छीनता, साथ छाँव के धूप ।।

मुख मंडल पर शोक है, आँखों में है पीर ।
मोह तोड़ ममता चली, छोड़ देश का तीर ।

सुशील सरना / 27-3-25

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