नवल मन

नवल मन होकर स्वच्छंद,
पथ पर बढ़ा होकर मतंग।
चुन चुन कर सब खुशियों के रंग ,
बढ़ रहा लेकर सबको संग।
नवल मन होकर स्वच्छंद।।
देखकर दुनिया है दंग,
नया हौसला नया उमंग।
चिंतन का भी बदला है ढंग,
पुलकित है यह तन- बदन।
नवल मन होकर स्वच्छंद।।
रख कर स्वयं पर संयम ,
गढ़कर नित नूतन छंद।
भुजाओं को बनाकर पंख,
उड़ चला छूने को गगन।
नवल मन होकर स्वछंद ।।
न हो अब कोई करुण रुदन,
नए पाठ का हो नूतन अध्ययन।
कर सभी विचारों का मंथन,
नई राह का करके चयन।
नवल मन होकर स्वच्छंद।।
जितना भी शेष बचा जीवन l
नित रहे केवल यह स्मरण।
नश्वर है यह पूरा जीवन,
पर सेवा में रहूं समर्पण।
नवल मन होकर स्वच्छंद।।
आप सभी को उगादि की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏