दोहा चौका . . . . मन
दोहा चौका . . . . मन
मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम ।
मन में सुख का नाद है, मन प्रभु इच्छित धाम ।।
मन में जीवन लिप्तता, मन में है बनवास ।
मन के आँगन में करे, मन की इच्छा रास ।।
मन में ही संतोष है, मन में है संताप ।
मन में हरदम हर्ष का, रहे अमर आलाप ।।
सुशील सरना / 25-3-25