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25 Mar 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22/112

बिना काविश तो कोई भी खुशी आने से रही।
ख्वाहिश ए नफ़्स कभी आगे बढ़ाने से रही।
❤️
ख्वाहिशें लज्ज़त ए दीदार जवां है अब तक।
उस से मिलने की तमन्ना तो ज़माने से रही।
❤️
तुझ से मुमकिन हो भुलाना तो भुला देना तुम।
तेरी चाहत,मेरे दिल से कभी जाने से रही।
❤️
पाक दामन को रखा अपनी जु़लेखा से मगर।
हुस्न ए यूसुफ पे भी इल्जा़म लगाने से रही।
❤️
सीख ले कोई हुनर अपने गुजा़रे के लिए।
शायरी अपनी कभी रोज़ी चलाने से रही।
❤️
मौत आसान है अब हिज्र की सा’अत से “सगी़र”।
रिश्ता ए ज़ीस्त मुहब्बत के फ़साने से रही।
❤️❤️❤️❤️❤️
डॉ सगी़र अहमद सिद्दीकी़ खै़रा बाज़ार

Language: Hindi
33 Views
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