मुक्ति और बंधन: समझें दोनों के बीच का अंतर। ~ रविकेश झा

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान का अभ्यास कर रहे होंगे। हम जीवन प्रतिदिन जीते हैं और कुछ इच्छा लेकर चलते हैं सोचते हैं कुछ भौतिक सुख प्राप्त हो जाए और हम सब खुश रहे इसलिए हम सभी कुछ कर्म करते हैं। जो हमें भौतिक सुख के ओर ले जाता है लेकिन हम सब जीवन में ये भी नहीं जानते की हम सब का उद्देश्य क्या है हमारा जन्म क्यों हुआ है ये सब बात तब आप समझने में सफल होंगे जब आप कुछ ऊपर उठेंगे लेकिन ये शरीर को खुश करने के बाद ही होगा जब आप मन तक पहुंच जायेंगे फिर आप कुछ सार्थक सोच सकते हैं। नहीं तो आप बस नीचे के ओर रहेंगे कुछ धन चाहिए जो आपके मन को स्वतंत्र करता है ताकि आप कुछ अध्यन कर सको, कुछ सार्थक जान लो इसीलिए कुछ व्यक्ति पढ़ाई पर ध्यान देते हैं कुछ अध्यन कर लेते हैं उसके लिए वह पहले शरीर को शांत करते हैं मन तक पहुंचते हैं। जो शरीर तक सीमित रहेगा उसको बस भौतिक के लिए कुछ करता रहेगा जैसे जैसे शरीर को पूर्ति मिलता है वैसे वैसे हम मन तक पहुंचते हैं जब मन पूर्ण संतुष्ट हो गया फिर हम आत्मा में प्रवेश करते हैं। मुख्य बात ये है कि हम सभी कुछ कामना ले कर चलते हैं शरीर के लिए मन के लिए या आत्मा के लिए कर्म सब कर रहा है लेकिन बहुत ऐसे व्यक्ति हैं जो मुक्ति चाहते हैं बंधन से मुक्ति चाहते हैं सोचते हैं जन्म जन्म से क्या हो रहा है हमें भी जानना है ताकि हम सब मुक्ति के ओर बढ़ने में सफल होंगे। या तो आप भौतिक सुख के लिए जीवन जिएंगे या सूक्ष्म के लिए कामना तो कामना है कोई मुक्ति चाहता है कोई बंधन सभी कामना में जीते हैं लेकिन जीवन का अंतिम छोर मुक्ति है ये बात हम सभी जानते हैं लेकिन बहुत धारणा पकड़ लिए हैं कि ऊपर में होगा कर्म पर निर्भर होगा लेकिन ध्यानी कहते हैं नहीं जीवन को जाने बिना मुक्ति संभव नहीं जब तक स्वयं का खोज नही करते तब तक मुक्ति बंधन का कुछ पता नहीं चलेगा, फिर हम सब भगवान के भरोसे रह जायेंगे और फिर जन्म जन्म भटकना होगा। एक शरीर आपको मां पिता के कारण मिला है और शरीर आपके अंदर है जो विराट है विराजमान है सूक्ष्म ब्रह्म आकाश ये सब शरीर को खोजना होगा जो अंदर कई परतें है उसे जागरूकता के साथ खोलना होगा। आज बात कर कर रहे हैं बंधन क्या है मुक्ति क्या है और कैसे जीवन मृत्यु से परे जाने में कामयाब हो। मुक्ति और बंधन की अवधारणाएं दार्शनिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परमापराओं में गहराई से निहित है। हालांकि वे विपरीत विचार प्रतीत होते हैं, लेकिन उनके बीच जटिल संबंध को समझना मानव अस्तित्व में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। हम इन दो अवस्थाओं के अर्थ, निहितार्थ और उनके बीच के नाजुक संतुलन का पता लगाएंगे।
मुक्ति को समझना: मुक्ति का मार्ग।
मुक्ति को अक्सर परम स्वतंत्रता की स्थिति के रूप में वर्णित किया जाता है। कई आध्यात्मिक परंपराओं में, यह जन्म और मृत्यु के चक्र से आत्म की मुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मुक्ति प्राप्त करना जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता है, जो शाश्वत शांति और आनंद के ओर ले जाता है। यह मुक्ति केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक भी है, जो व्यक्तियों को सांसारिक आसक्तियों और इच्छाओं से मुक्ति करती है। कई दर्शन और ध्यानी सुझाव देते हैं कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए स्वयं और ब्रह्मांड की गहरी समझ की आवश्कता होती है। इसमें ध्यान, आत्मचिंतन और धार्मिकता नैतिक अखंडता का जीने का अभ्यास करना होता है। जब तक हम ध्यान में नहीं बैठेंगे तब तक हमें कुछ पता चलने वाला नहीं, जब तक मुक्ति का पता न चले की किसको मुक्त करना है ये जानना होगा, क्योंकि हम सब कुछ राय कायम कर लेते हैं कुछ शास्त्र अध्यन कर लेते हैं लेकिन भीतीक शब्द से कुछ नहीं होने वाला ध्यान में आना होगा मुक्ति बंधन दोनों को जानना होगा तभी आप जीवन मृत्यु से परे होंगे। अहंकार से ऊपर उठकर और निस्वार्थ को अपनाकर, व्यक्ति मुक्ति की इस अवस्था के करीब पहुंच जाता है।
बंधन की प्रकृति: बंधन क्या है।
इसके विपरित, बंधन उन संबंधों और आसक्तियों के संदर्भित करता है जो व्यक्तियों को भौतिक दुनिया से बांधते हैं। शरीर को सच मान लेते हैं जैसा जैसा शरीर इशारा करता है हम पूर्ति करने लगते हैं। ये इच्छाएं, भावनाएं और रिश्ते हैं जो एक जटिल जाल बनाते हैं, जो अकसर दुख और असंतोष की ओर ले जाता है। बंधन को आध्यात्मिक विकास में बाधा डालने वाली बाधाओं के रूप में देखा जाता है और व्यक्ति को सच्ची मुक्ति प्राप्त करने से रोकता है। आप जब तक शरीर को सच मानेंगे तो दुख क्रोध घृणा होगा जीवन में जब तक आशा लोभ मोह ईर्ष्या स्पर्धा वासना है तब तक हम जीवन में ही रहेंगे और मुक्ति लिए मौत में प्रवेश करना होता है। जब तक भय है फिर मुक्ति कैसे मिलेगा हम बंधन में जीने लगते हैं मोह हमें बांध देता है और हम कुछ नहीं कर पाते और मृत्यु के समय रोते बिलखते है तनाव के साथ मरते हैं इच्छाओं के साथ मरते हैं हम इस शरीर को छोड़ देते हैं लेकिन ये भावनाएं विचार और इच्छा के कारण जन्म जन्म तक भटकते हैं। इसीलिए अभी बंधन से मुक्त होना होगा तभी हम जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करेंगे। जबकि बंधन अक्सर नकारात्मक रूप से देखा जाता है, यह मानव अनुभव का एक अनिवार्य हिस्सा भी है। रिश्ते, जिम्मेदारियां और इच्छाएं जीवन में समृद्धि लाती हैं, उद्देश्य और प्रेरणा प्रदान करती हैं। बंधन हमें नहीं पकड़ता है हम पकड़ते हैं हम फंसते हैं हम कामनाओं के साथ जीते हैं चाहे झूठ बोलेंगे या सत्य लेकिन कामनाओं के साथ संबंध बनाएंगे फिर अगर ध्यान नहीं रहा तो घृणा क्रोध वासना लालच होगा या प्रेम करुणा मैत्रेय भाव रहेगा, सिक्के के दो पहलू हैं लेकिन अगर हम ध्यान के साथ रहेंगे फिर हम निष्काम में रहेंगे फिर हम परिणाम पर निर्भर नहीं रहेंगे हम फल के चिंता के बिना जीवन जीते रहेंगे फिर न कोई बंधन रहेगा न कोई तनाव। फिर हम धीरे धीरे जीवन मृत्यु को समझने लगेंगे ऊर्जा को रूपांतरण कर लेंगे फिर हम मृत्यु से भय नहीं करेंगे खुशी खुशी शरीर से अलग होंगे और बिल्कुल शून्य होकर मृत्यु में प्रवेश करेंगे फिर हमारा कोई जन्म नहीं कोई मृत्यु नहीं। लेकिन पहले ध्यान में उतरना होगा।
जीवन हमें मुक्ति और बंधन के बीच संतुलन खोजने के बारे में है। जबकि पूर्ण मुक्ति कुछ लोगों के लिए अंतिम लक्ष्य हो सकता है, अन्य लोग आध्यात्मिक आकांक्षाओं को सांसारिक जिम्मेदारियों के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं। यह संतुलन व्यक्तियों को अपने आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ते हुए भी पूर्ण जीवन जीने की अनुमति मिलता है, जब तक शरीर भाव है तब तक बंधन है जब आत्मिक में आ गए फिर मुक्त आप स्वयं हो स्टेट है। बस ध्यान का स्वाद चखना होगा। इस संतुलन को प्राप्त करने के लिए सचेतन और सचेत जीवन की आवश्यकता होती है। इसमें सांसारिक आसक्तियों की नश्वरता को पहचाना और सार्थक रिश्तों और अनुभवों को संजोना शामिल हैं। उदासीनता के बिना वैराग्य की खेती करके व्यक्ति जीवन की समृद्ध का आनंद ले सकता है बिना इसके अभिभूत हुए।
जीवन के बंधनों को गले लगाते हुए मुक्ति की ओर कदम।
दुनिया से अपने संबध को बनाए रखते हुए मुक्ति की ओर जाने वाले लोगों के लिए, यहां कुछ व्यवहारिक कदम दिए गए हैं।
आत्म-जागरूकता: नियमित रूप से अपने कार्यों इच्छाओं और प्रेरणाओं पर चिंतन करे। आंतरिक शांति और स्पष्टता विकसित करने के लिए ध्यान का अभ्यास करें। प्रत्येक क्षण में मौजूद रहें, जीवन की सुंदरता की सराहना करें बिना उससे चिपके हुए, सचेत रहना है। दूसरे के प्रति दयालुता और सेवा के कार्यों में संलग्न हों, निस्वार्थ को बढ़ावा दें। जीवन में बंधन मुक्ति को महत्व देना होगा ध्यान के साथ तभी हम संतुलन के साथ जिएंगे। आखिरकार, कुंजी जागरूकता में निहित है, यह पहचानना कि कब छोड़ना है कब पकड़ना है। ऐसा करने से व्यक्ति जीवन के बंधनों की सुंदरता का आनंद लेते हुए सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव कर सकता है।
हमें ध्यान देना है कि जीवन कैसे चल रहा है और इसे कैसे रूपांतरण किया जा सकता है कैसे जीवन मृत्यु से परे जाना है बस इस बात पर ज़ोर देना होगा। हम भय के साथ जीते हैं सोचते हैं फल ऊपर मिलेगा कोई है बैठे हुए जो हमें मुक्ति देगा। ये सब बात ध्यान से स्पष्ट हो जाता है कि कोई भौतिक व्यक्ति नहीं है हमें स्वयं मुक्त होना होगा वह भी ध्यान के साथ। हमें मुक्ति चाहिए लेकिन अभी भय है कुछ कामना है लेकिन बंधन के कारण हम स्वयं को अलग नहीं कर पाते। ध्यान में बैठते हैं तो बाहर ही ध्यान रहता है ऐसे में कैसे हम मुक्ति के ओर बढ़ेंगे। इसका एक ही उपाय है जो हो रहा है उसे होने दे उसे रोक नहीं बस ध्यान के साथ गुजरने दें। बस देखते रहे, और ये देखने का कष्ट करें कि आता कहां से है विचार फिर अंत कहां होता है उसके लिए गहन शांत होना होगा। जो हो रहा है उसे देखते रहे, फिर आप देखने वाले को भी देख लोगे, फिर कुंजी आपके हाथ में होगा। आप मालिक होंगे आप पूर्ण होंगे, आप बौद्ध होंगे अगर ध्यान में प्रतिदिन प्रवेश करेंगे तब नहीं तो बस क्रोध घृणा रहेगा और आप जीवन को तबाह कर लेंगे आपको जागरूकता के साथ जीना है या मूर्खता के साथ दोनों विकल्प आपके पास मौजूद है। चयन आपको करना है कैसे जीवन जीना है। हम अक्सर जल्दी में रहते हैं वासना में लगे रहते हैं वासना दौड़ता है प्रेम ठहरता है आप देख ले आप कैसे जी रहे हैं आपको दौड़ना पसंद है या ठहरना, या पूर्ण स्थिर सब आपके हाथ में है आप जीवन में कामनाओं के साथ रह कर भी मुक्त हो सकते हैं जिसे हम सब निष्काम कहते हैं ना फल की चिंता न कर्म की जैसे भगवान का इच्छा वैसे हम रहेंगे बीच में नहीं आएंगे बस ध्यान के साथ रहना होगा। जीवन में मोह जब बढ़ने लगे तो उसे त्यागना सत्य नहीं होगा, बल्कि ध्यान करना होगा, आप ही हैं न फिर क्रोध घृणा खोज लेंगे, आप कुछ न कुछ करेंगे ये बात को ध्यान में रखना होगा कि आप कुछ करेंगे कोई न कोई इंद्रियां का उपयोग करेंगे इसीलिए हमें कहीं भागना नहीं है मन को कैसे रोक पाओगे, शरीर में नहीं तो मन में सोचोगे कुछ न कुछ करोगे आप, इसीलिए हमें भागना नहीं है बल्कि हिम्मत के साथ रहना है। ध्यान के साथ आगे बढ़ना होगा। कर्ता और कर्म दोनों के प्रति जागरूक होना होगा। बस चेतना तक पहुंचना है अंतिम लक्ष्य यही है हमारा बस ध्यान के साथ रहना होगा ताकि हम बंधन से परे जा सकें और पूर्ण मुक्त होने में भी सफल हों। लेकिन कोई भी विचार आपको मोह से अलग नहीं कर सकता हां मन को अच्छा लग सकता है थोड़े देर के लिए रुक सकते हैं लेकिन पूर्ण मुक्त नहीं हो सकते, क्योंकि आपके एक मन को अच्छा लगा लेकिन आपके पास और मन है वह विरोध करेगा वह कामना के लिए उत्तेजित करेगा। आप कितने इंद्रियां को रोकोग और कैसे और कौन रोकेगा। इसीलिए हमें ध्यान के साथ रहना होगा साहब।
धन्यवाद।
रविकेश झा।
🙏❤️