फ़्लैश
संस्कृति, सभ्यता और परंपरा के पुजारी
बैठे थे पालथी में
मंदिर गर्भगृह के परिक्रमा द्वार पर
बस, वह बैठें हैं।
देख रहे हैं मानवीय करुणामय को द्रवित करता
यह मेरा वंशज। तनया।
मानव के आवरण के पिंजरों में बैठा
मान-मर्यादाओं के उपनिषद्
जिसे धराशायी करता यही श्रृंखलाएँ आदमी होने का,
आदमी! यह पत्राचार करता नायक कौन है ?
जिसके संज्ञा पर उपारूढ़ होता है यह वृक्षस्तंभ के नीचे लगा सीढ़ियाँ पर से उतरते बहुत से चेहरे
उस बाज़ारों के चकाचौंध में अंधा है।
मनावता से बना पुंज के खलनायक कौन है ?
जिसका यमराज दो बुद्ध बना
एक बुद्ध के मांग में सिन्दूर
जिसके सात मन, क्रम, वचन से जन्म-जन्मांतर तक शुद्ध होने का अभिप्राय है
वह महावीर कौन है ? जिसके देह पर तिहत्तर छुरियाँ चले
उस टुकड़ियों के लाशों पर बैठा आख़िर दूसरा बुद्ध कौन है!
दूसरे दिन बड़े-बड़े पोस्टरों, विज्ञापनों, न्यूज़ों के हाइलाइट्स पर फ़्लैश होता है
” पत्नी ने प्रेमी संग की पति के तिहत्तर टुकड़ियाँ___प्रेमी संग हनीमून”
Varun Singh Gautam