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21 May 2025 · 1 min read

जग से सीख

जब – जब सीधा चलता है तू ,
जग तुझको कहता है सीधा ।
रे नर सीधा पेड़ है कटता,
ये जग हे नर तुझसे कहता।।
फिर सुनता नर जग की बातें,
कहता हे तन सीधा मत चल।
तिर्यक गति से चलता फिर तन,
कुछ क्षण होता खुश सारा मन।।

आगे बढ़कर मिलते फिर जन,
कहते पथिक तू तिर्यक मत चल।
तिरछा तन लगता बूढापन ,
तू तो युवा है ऊंचा उठ चल ।
ऊंचा उठाके चलता नर तन,
कुछ क्षण होता खुश सारा मन।।

बढ़ता फिर नर जग ही कहता,
यह तो ऊंचा गर्व में रहता ।
गर्व क्यों इसको अपने तन का,
फिर सुख जाता सारे मन का ।।

रे नर अपने जग में तुझको,
जैसा मन हो वैसा तू चल।
बस अपने कर्मों को तू कर,
जग की न सुन तू निश्च्छल चल।
रे नर जग जंजाल की माया,
तेरा तन है तेरी काया ।
तू तो अपने हृदय की सुनकर,
बस इस जग में अच्छा ही कर।।

मन ने फिर इस बात को माना,
जग का सुना किया अनजाना।
नर का फिर सारा ये जग – तन,
हर क्षण होता खुश उसका मन।।

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