पहले जैसा गाँव नहीं है

कितना बदल गया ये मौसम कितने चेहरे बदल गये।
कितने हुए पराये अपने कितने अपने बदल गये।।
बदल गया है गाँव हमारा पीपल वाली छाँव नहीं है ।
घर घर राजनीति पलती है पहले जैसा गाँव नहीं है ।।
फूलों की महकी बगिया में काँटों पर अरमान रखे हैं ।
कमरों को सुंदर चमकाने काग़ज़ के गुलदान रखे हैं।।
सावन में अमुआ पर झूला खो खो और कबड्डी खेले।
बाबा वाली बैठक के अब सारे कमरे बदल गये ।।
खूब पिया था दूध दही जो अब डिब्बे में सिमट गया।
संस्कार को जिया था जिसने वो भी देखो भटक गया।।
नये दौर में सबकुछ बदला कहने भर को रिश्ते हैं।
अपने अपने दिखते हैं पर सबसे पहले हंसते हैं।।
दिखे दिखावा दुनिया भर में कोई नहीं अपना लगता।
दुख में भाग गये वो देखो कितने घर के बदल गये ।।
पापा की जूती में देखो पाँव हमारे पड़े हुए हैं ।
गाँवों की पगडंडी चलकर अपने पैरों खड़े हुए हैं।।
दस पैसे में टॉफ़ी हम जो ढूँढ रहे पर नहीं मिलेगी।
गाँवों की सौंधी ख़ुशबू भी महानगर में नहीं दिखेगी।।
ईदगाह के हामिद ने भी अब चिमटे को नहीं खरीदा।
पहले से देखो तो कितने अपने सपने बदल गये।।