Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
21 Mar 2025 · 1 min read

अवधी कविता

पिरकी

टूट जाय जउ बार गोड़ कै वहका लोग बतावत पिरकी
अंग कुअंग निकरि जउ आवै जान पे ई बनि आवत पिरकी

निकरै जउ ई गाले मा तौ फूल जाय मुँह बाँदर यस
दुइन दिना मा रंग दिखावै खूँन मवाद बनावत पिरकी

कहूँ कखौरिम निकरि जउ आवै गत ना पूछौ भैया तू
हाथ उठाये उठतै नाही दिन अउ रात रोवावत पिरकी

नान सयान अउ बूढ़ पुरनिया कोई कैंहें बख्सै ना
लूला लेंगड़ा सब कै डारै लाठिक बले चलावत पिरकी

जहर पिरकिया कहत हैं यहका येकर यहै दवाई है
काली मिरिच लगाओ प्रीतम फिर न उभर ई पावत पिरकी

प्रीतम श्रावस्तवी

Loading...