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21 Mar 2025 · 5 min read

विश्व वन्य दिवस

डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस संक्षिप्त तथ्य
कार्यक्रम नाम अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (World Forest Day)
कार्यक्रम दिनांक 21 / मार्च
कार्यक्रम की शुरुआत 1971
कार्यक्रम का स्तर अंतरराष्ट्रीय दिवस
कार्यक्रम आयोजक संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश

Ref samanya Gyan on net :-

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का संक्षिप्त विवरण
विश्व के विभिन्न देशों में वनों को महत्‍व देने के लि‍ए हर साल 21 मार्च को “वि‍श्‍व वन दि‍वस” मनाया जाता है। 21 मार्च को दक्षि‍णी गोलार्ध में रात और दि‍न बराबर होते हैं। यह दि‍न वनों और वन के महत्त्व और समाज में उनके योगदान के तौर पर मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का इतिहास
वर्ष 1971 में पहली बार विश्व वानिकी दिवस मनाया गया था। भारत में वन महोत्सव जुलाई 1950 से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति के. एम. मुंशी ने की थी।

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के बारे में अन्य विवरण
वन किसे कहते है?
एक क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व अत्यधिक रहता है उसे वन कहते हैं। वनों ने पृथ्वी के लगभग 9.4% भाग को घेर रखा है और कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30% भाग घेर रखा है। कभी वन कुल भूमि क्षेत्र के 50% भाग में फैल हुए थे।

वन जीव जन्तुओं के लिए आवास स्थल, जल-चक्र को प्रभावित करते हैं और मृदा संरक्षण के काम आते हैं इसी कारण यह पृथ्वी के जैवमण्डल का अहम हिस्सा कहलाते हैं।

भारत में वनों के प्रकार
भारत में विविध प्रकार के वन पाये जाते हैं, दक्षिण में केरल के वर्षा वनों से उत्तर में लद्दाख के अल्पाइन वन, पश्चिम में राजस्थान के मरूस्थल से लेकर पूर्वोत्तर के सदाबहार वनों तक। जलवायु, मृदा का प्रकार, स्थलरूप तथा ऊँचाई वनों के प्रकारों को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं।

वनों का विभाजन, उनकी प्रकृति, बनावट, जलवायु जिसमें वे पनपते हैं तथा उनके आस-पास के पर्यावरण के आधार पर किया जाता है। भारत में वनों (जंगलों) को अलग अलग तरीकों और विशिष्टता के कारण कई भागों में वर्गीकृत (विभाजित) किया जा सकता है:-

शंकुधारी वन:
उन हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां तापमान कम होता है। इन वनों में सीधे लम्बे वृक्ष पाये जाते हैं जिनकी पत्तियां नुकीली होती हैं तथा शाखाएँ नीचे की ओर झुकी होती है जिससे बर्फ इनकी टहनियों पर जमा नहीं हो पाती। इनमें बीजों के स्थान पर शंकु होते हैं इसलिए इन्हें जिम्नोस्पर्म भी कहा जाता है। चौड़ी पत्तियों वाले वनों के कई प्रकार होते हैं- जैसे सदाबहार वन, पर्णपाती वन, काँटेदार वन, तथा मैंग्रोव वन। इन वनों की पत्तियाँ बड़ी – बड़ी तथा अलग – अलग प्रकार की होती हैं।

सदाबहार वन:
पश्चिमी घाट पूर्वोत्तर भारत तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित उच्च वर्षा क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यह वन उन क्षेत्रों में पनपते हैं जहां मानसून कई महीनों तक रहता है। यह वृक्ष एक दूसरे से सटकर लगातार छत का निर्माण करते हैं।

इसलिए इन वनों में धरातल तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता। जब इस परत से थोड़ा प्रकाश धरातल तक पहुंचता है तब केवल कुछ छायाप्रिय पौधे ही धरती पर पनप पाते हैं। इन वनों में आर्किड्स तथा फर्न बहुतायत में पाये जाते हैं। इन वृक्षों की छाल काई से लिपटी रहती है। यह वन जन्तु तथा कीट जीवन में प्रचुर हैं।

आर्द्र सदाबहार वन:
दक्षिण में पश्चिमी घाट के साथ तथा अंडमान – निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वोत्तर में सभी जगह पाये जाते हैं। यह वन लंबे, सीधे सदाबहार वृक्षों से जिनकी तना या जड़े त्रिपदयीय आकार की होती हैं से बनते हैं जिससे ये तूफान में भी सीधे खड़े रहते हैं। यह पेड़ काफी दूरी तक लंबे उगते हैं जिसके पश्चात ये गोभी के फूल की तरह खिलकर फैल जाते हैं।

इन वनों के मुख्य वृक्ष जैक फल, सुपारी, पाल्म, जामुन, आम तथा हॉलॉक हैं। इन वनों में तने वाले पौधे जमीन के नजदीक उग जाते हैं, साथ में छोटे वृक्ष तथा फिर लंबे वृक्ष उगते हैं। अलग – अलग रंगों के सुन्दर फर्न तथा अनेक प्रकार के आर्किड्स इन वनों के वृक्षों के साथ उग जाते हैं।

अर्द्ध सदाबहार वन:
इस प्रकार के वन पश्चिमी घाट, अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वी हिमालयों में पाये जाते हैं। इन वनों में आर्द्र सदाबहार वृक्ष तथा आर्द्र पर्णपाती वनों का मिश्रण पाया जाता है। यह वन घने होते हैं तथा इनमें अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।

पर्णपाती वन:
यह वन केवल उन्हीं क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां मध्यम स्तर की मौसमी वर्षा जो केवल कुछ ही महीनों तक होती है। अधिकतर वन जिमें टीक के वृक्ष उगते हैं इसी प्रकार के होते हैं। यह वृक्ष सर्दियों तथा गर्मियों के महीनों में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं।

मार्च तथा अप्रैल के महीनों में इन वृक्षों पर नयी पत्तियां उगने लगती हैं। मानसून आने से पहले ये वृक्ष वर्षा की उपस्थिति में वृद्धि करते हैं। यह पत्तियां गिरने तथा इनकी चौड़ाई बढ़ने का मौसम होता है। क्योंकि प्रकाश इन वृक्षों के बीच से वनों के तल तक पहुंच सकता है। इसलिए इनमें घनी वृद्धि होती है।

कांटेदार वन:
यह वन भारत में कम नमी वाले स्थानों पर पाये जाते हैं। यह वृक्ष दूर – दूर तथा हरी घास से घिरे रहते हैं। कांटेदार वृक्षों को कहते हैं जो जल को संरक्षित करते हैं। इनमे कुछ वृक्षों की पत्तियां छोटी होती हैं तथा कुछ वृक्षों की पत्तियां मोटी तथा मोम युक्त होती हैं ताकि जल का वाष्पीकरण कम किया जा सके। कांटेदार वृक्षों में लंबी तथा रेशेयुक्त जड़ें होती हैं जिनसे पानी काफी गहराई तक पहुंच पाता है। कई वृक्षों में कांटे होते हैं जो पानी की हानि को कम करते हैं तथा जानवरों से रक्षा करते हैं।

मैंग्रोव वन:
नदियों के डेल्टा तथा तटों के किनारे उगते हैं। यह वृक्ष लवणयुक्त तथा शुद्ध जल सभी में वृद्धि करते हैं। यह वन नदियों द्वारा बहाकर लायी गई मिट्टियों में अधिक वृद्धि करते हैं। मैंग्रोव वृक्षों की जड़ें कीचड़ से बाहर की ओर वृद्धि करती हैं जो श्वसन भी करती हैं।

वनों से होने वाले प्रमुख लाभ:
वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव काग़ज़ के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि।

फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं।

पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए जरूरत पड़ती है। वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। वे सभी जीवों को सूर्य की गर्मी से बचाते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं।

वन प्रकाश का परावर्तन घटाते हैं, ध्वनि को नियंत्रित करते हैं और हवा की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने में मदद करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं।

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