Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2025 · 7 min read

प्रवृत्ति और निवृत्ति तथा कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड में संतुलन सनातन ‘भारतीय दर्शनशास्त्र’ का सार (Balance between action and retirement and rituals and knowledge is the essence of eternal ‘Indian Philosophy’)

सनातन धर्म और संस्कृति सनातन से है। समय-समय पर सनातन के महापुरुषों ने प्रवृत्ति और निवृत्ति, कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड में संतुलन साधने पर जोर देकर अपना अपना कार्य किया है। लेकिन हरेक काल में स्वार्थी,लालची, महत्वाकांक्षी और पदलोलुप व्यक्ति रहे हैं। ऐसे लोग किसी भी महापुरुष द्वारा प्रसारित प्रवृत्ति या निवृत्ति, कर्मकाण्ड या ज्ञानकाण्ड में से किसी एक पहलू को पकड़कर उस महापुरुष को केंद्र में रखकर संप्रदाय,मत,वाद आदि की स्थापना कर देते हैं।उस महापुरुष का उस उस संप्रदाय,मत,वाद,पंथ आदि से कोई भी संबंध नहीं होता है। लेकिन कुछ समय व्यतीत होने पर लालची लोगों द्वारा यह प्रचारित कर दिया जाता है कि उस उस महापुरुष ने ही इस- इस संप्रदाय,मत,वाद,पंथ की स्थापना की थी।यह सिलसिला हजारों वर्षों से चल रहा है। विशेषकर आज से 5100 वर्षों से यानी महाभारत युद्ध के पश्चात् इस सांप्रदायिकता प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा है। शैव, वैष्णव, चार्वाक,आजीवक,तंत्र,पारसी, जैन,बौद्ध,शिंतो,ताओ,यहुदी, ईसाईयत, इस्लाम, सूफी, संत,सिख आदि संप्रदाय,मत,वाद,पंथ आदि सभी सनातन धर्म और संस्कृति के प्रवृत्ति या निवृत्ति, कर्मकाण्डीय या ज्ञानकाण्डीय पक्ष पर जोर देकर दोनों में संतुलन साधने प्रयास रहे हैं। लेकिन बाद में स्वार्थी, लालची, महत्वाकांक्षी लोग पद, प्रतिष्ठा,धन, दौलत आदि के गुलाम होकर खुद को सनातन धर्म और संस्कृति से भिन्न प्रचारित करने लगते हैं। ब्रह्मा, विष्णु,शिव, मनु,श्रीराम, श्रीकृष्ण, बृहस्पति,जरथुष्ट्र, महावीर, सिद्धार्थ, मूसा,ईसा, मोहम्मद , गोरखनाथ,कबीर,नानक आदि ने किसी नये पंथ की स्थापना कभी भी नहीं की थी।सच तो यहां तक भी है कि शुरू में तो जिन महावीर ही हुये थे। लेकिन बाद में जिन महावीर के एक गणधर ने ही खुद को बुद्ध नाम से प्रचारित कर दिया था। शुरू में सिद्धार्थ गौतम का कोई भी मत आदि नहीं था।जिन महावीर और सिद्धार्थ गौतम एक ही व्यक्ति थे। इतिहास में बहुत घालमेल किया गया है। आजकल तो धर्मगुरुओं में महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल हो गई है कि कोई शिवदयाल,प्रभुपाद, लेखराज, गुरमीत राम, रामपाल, जग्गी वासुदेव अपने अनुयायियों द्वारा अपने आपको परमात्मा मनवाकर पूजा करवाना शुरू कर देता है। सनातन धर्म, संस्कृति,योग साधना, अध्यात्म , नैतिकता, जीवनमूल्यों और दर्शनशास्त्र के लिये यह प्रवृत्ति बहुत घातक सिद्ध हो रही है।
रसैल ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री आफ वैस्टर्न फिलासफी’ में स्वीकार किया है कि उन्नीसवीं सदी का बौद्धिक जीवन जिन कारकों के कारण अत्यंत पेचीदा हो गया था, उनमें से एक प्रमुख कारक यूरोपवासियों का भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित होना था।रसैल का यह वक्तव्य अधूरा है। पूरा वक्तव्य यह होना चाहिये कि उन्नीसवीं सदी के पाश्चात्य फिलासफर एक बार फिर से पहले के युगों की तरह भारतीय दर्शनशास्त्र से प्रभावित हो रहे थे। बेबीलोनिया सभ्यता,मैसोपोटामिया सभ्यता,मिस्री विचारक,अरबी विचारक,थैलिज से पहले के युनानी विचारक,खुद थैलिज कालीन विचारक,सोफिस्ट विचारक,सुकरातीय विचारक,रोमन विचारक,चीनी विचारक आदि सभी पर सनातन भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म, नैतिकता,योग साधना, राजनीति, कर्मकांड, संस्कृत भाषा आदि का किसी न किसी रूप में प्रभाव रहा था।विल डूरांट ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ फिलासफी तथा फ्रैंक थिल्ली ने हिस्ट्री आफ वैस्टर्न फिलासफी’में इस सच्चाई को दबे स्वर में स्वीकार किया है।
संसार में ऐसा कौनसा दर्शनशास्त्र, ऐसी कौनसी फिलासफी,ऐसी कौनसी विचारधारा, ऐसा कौनसा सिद्धांत, ऐसा कौनसा संप्रदाय, ऐसा कौनसा मजहब, ऐसा कौनसा महापुरुष हैं जिसकी आड़ लेकर इन्हीं के अनुयायियों ने उपरोक्त को जनमानस की लूट और अपने स्वयं को मालामाल करने के लिये दुरुपयोग नहीं किया गया हो। किसी का कम तो किसी का अधिक सभी का दुरुपयोग हुआ है। दुरुपयोग करने वाले कोई अन्य ग्रहों से आये व्यक्ति नहीं अपितु इनके स्वयं के नजदीकी भक्त लोग ही रहे हैं।हर सही को ग़लत,हर नैतिक को अनैतिक तथा हर मानवीय को अमानवीय बना देने का हूनर अनुयायियों, भक्तों और नकल करने वालों में मौजूद होता है।इसका पता अनुयायियों के आराध्य महापुरुषों को होता भी है। लेकिन कुछ तो इसलिये चुप रह जाते हैं कि उनकी सोच ही लूटेरी,शोषक और भेदभाव की होती है और कुछ इसलिये चुप रह जाते हैं कि क्योंकि उनको मालूम होता है कि अनुयायी, भक्त, नकलची लोग ऐसे ही होते हैं। उपरोक्त दोनों हालात में जनमानस ठगा जाता है। उपरोक्त दोनों से उत्पन्न ऊहापोह के कारण सत्य के खोजियों को ही दिक्कत होती है। सत्य के खोजियों के लिये कंकड़-पत्थर से हीरे निकालने के समान मेहनत करनी पड़ती है।
कुछ लोग विश्वास पर अटककर अंधविश्वासी हो जाते हैं तो दूसरे कुछ लोग किसी तथ्य, घटना, सूचना या व्यक्ति के संबंध में केवल तर्क -वितर्क पर अति विश्वास करते रहने के कारण नीरस होकर नास्तिक हो जाते हैं। पहले का अपने विश्वास पर अति विश्वास भी अंधा होता है तथा दूसरे का तर्क -वितर्क पर अति विश्वास भी अंधा ही होता है। दोनों में अंधापन मौजूद होता है। दोनों एक ही प्रकार की बेवकूफी के विपरीत सिरे होते हैं। दोनों प्रकार की बेवकूफी से छूटकारा एक दूसरे का अंधा विरोध करना नहीं अपितु दोनों का विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करना होता है। विश्वास में तर्क और तर्क में विश्वास ही सत्यार्थ को जानकार जीवन जीने का सही रास्ता हो सकता है। लेकिन दिक्कत यह है कि जिनको विश्वास और तर्क की आड़ में अपनी दुकानदारी चलानी है ,वो लोग ऐसा क्यों करेंगे? संसार की हर सभ्यता, संस्कृति, मजहब, संप्रदाय और मत में ऐसे लोग मिल जायेंगे। भारतीय और पाश्चात्य दोनों जगह पर ऐसे लोग उपलब्ध रहे हैं। अंधभक्त केवल अंधभक्त होता है,वह चाहे भारत में हो या युनानी से प्रेरित पाश्चात्य में हो। पिछले कुछ दशकों से भारत में तर्क की आड़ में केवल कुतर्क और वितंडा का बोलबाला है तथा आस्था की आड़ में शोषण चल रहा है,तो पश्चिम में विज्ञान की आड़ में चमत्कारिक तकनीकी खोजों के सहारे संपूर्ण संसार को विषमता, बदहाली, गरीबी, बिमारी, भ्रष्टाचार, पर्यावरण प्रदुषण और युद्धों में धकेलकर सुंदर धरती ग्रह को नारकीय बना दिया गया है। पश्चिम वाले विज्ञान में अतिविश्वासी और अंधविश्वासी होने के कारण धरती के जड़ -चेतन अस्तित्व के लिये विनाशकारी सिद्ध हो रहे हैं तो भारतीय लोग पश्चिम से उधार के विज्ञान और अपने खुद के धर्म,अध्यात्म,योग- साधना और करुणा के दुरुपयोग के कारण विनाशकारी सिद्ध हो रहे हैं। विज्ञान,धर्म,संस्कृति ,योग -साधना, करुणा आदि क्षेत्र के तथाकथित बड़े -बड़े भारतीय महापुरुषों ने उपरोक्त को पाश्चात्य शैली में ढालकर खुद अपने लिये तथा पश्चिम के लिये बर्बादी के रास्ते खोल रखे हैं। गिरगिटी नेताओं से तो कोई आशा रखना व्यर्थ है और भारतीय नेताओं से तो किसी समझदारी की आशा रखना निरी बेवकूफी होगी।
यह इतिहास सिद्ध तथ्य है कि बौद्ध मतानुयायियों ने सनातन धर्म और संस्कृति के लिये सर्वाधिक खतरा पैदा किया है। खुदाईयों में जितने भी स्तूप, विहार,मठ आदि मिले हैं वो सब सनातन धर्म के मंदिरों, पूजास्थलों, गुरुकुलों, आश्रमों को तोडकर या फेरबदल करके बनाये गये हैं।जैन मतानुयायियों ने सनातन धर्म का अधिक अहित नहीं किया है।आज भी जैन मतावलंबी सनातन धर्म के जीवनमूल्यों के बहुत समीप हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार पी एन ओक के अनुसार बौद्ध मत विदेशी धरती पर सनातन धर्म और संस्कृति की शिक्षाओं को ही प्रचारित प्रसारित करने के लिये प्रयास था। बाद में बौद्ध मतानुयायियों ने जबरदस्ती से मतांतरण करवाना आरंभ कर दिया। तिब्बत में पहले से मौजूद सनातन धर्म की ही एक धारा बौन मतानुयायियों का नालंदा से गये एक बौद्ध विद्वान शान्तरक्षित ने मतांतरण करवाने का प्रयास किया था।वह कुछ अधिक सफल नहीं हो पाये। इसके पश्चात् पद्मनाभ को बुलाया गया। पद्मनाभ स्वयं सनातनी विद्वान था। उन्होंने बौन धारा, बौद्ध मत और सनातन में समन्वय करके एक अन्य धारा यिंग को प्रचलित किया। पद्मनाभ का आज भी तिब्बत में सर्वाधिक सम्मान है लेकिन कट्टरपंथी बौद्ध मतानुयायी उन्हें बहुत कम सम्मानित देते हैं। राहुल सांकृत्यायन जैसे विद्वान भी उनके विषय में पूर्वाग्रहग्रस्त हैं।
ओशो ने अपने एक प्रवचन में सुंदर ढंग से बतलाया है कि जो अपनी तपस्या और साधन के बल खुद श्रीराम, श्रीकृष्ण,जिन, बुद्ध, क्राईस्ट, मोहम्मद, नानक आदि नहीं बन सकता,वह इनका अनुयायी बन जाता है। कोई भी सच्चा महापुरुष किसी व्यक्ति को अनुयायी बनने की नहीं कहता है। हरेक महापुरुष का यह उपदेश होता है कि स्वयं के द्वारा स्वयं को जानो। लेकिन वो अनुयायी जो स्वयं के द्वारा स्वयं को नहीं जानना चाहते हैं, वो किसी महापुरुष की पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं। धरती पर सर्वत्र यही हो रहा है।इस तरह से सनातन धर्म को छोड़कर जितने भी संप्रदाय,मत, मजहब,वाद आदि प्रचलित हैं,इन सभी के अनुयायी वास्तव में अपने आराध्य महापुरुषों के विरोधी हैं। वास्तव में स्वयं को जानना कठिन रास्ता और तपस्या है, जबकि किसी का अंधानुकरण करना आसान है। आजकल के सैकड़ों धर्मगुरु तो ऐसे लालबुझक्कड हैं कि इन्होंने स्वयं को जाना ही नहीं है।ये स्वयं भी भटकाव, भ्रष्टाचार , बलात्कार, टैक्स चोरी, चिंता, तनाव, अशांति , अवैध कब्जे आदि के गड्ढों में गिर रहे हैं तथा अपने अनुयायियों का जीवन भी बर्बाद कर रहे हैं।
कई तथाकथित महापुरुष या सुधारक या धर्मगुरु या नेता या संगठन तो ऐसे हैं जो मिशनरी संस्थानों के हितार्थ काम कर रहे हैं।इनका काम करने का ढंग विचित्र है। ऐसे लोग कपटपूर्ण ढंग से सनातनी नाम रखते हैं, सनातनी कपड़े पहनते हैं, सनातनी ग्रंथों को आगे रखते हैं, सनातनी प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं, सनातन योगाभ्यास का सहारा लेते हैं, सनातनी पूजा-पाठ का दिखावा करते हैं तथा सनातनी महापुरुषों को केंद्र में रखते हैं।ये मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल, तमिलनाडु, कर्नाटक ,पंजाब, हरियाणा सहित पूरे भारत में सक्रिय हैं। सन् 2010 में एक सनातनी संन्यासी स्वामी नित्यानंद पर नकली अश्लील सीडी आदि के आरोप लगवाकर उन्हें विदेश भाग जाने पर विवश करने का षड्यंत्र भी मिशनरी शक्तियों के हितार्थ काम करने वाले कुछ धर्मगुरुओं ने रचा था। सन 2010 से वर्तमान सरकार के सत्तारूढ़ होने पर वह धर्मगुरु दक्षिण भारत सहित पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया है। अंग्रेजी भाषा में धाराप्रवाह बोलने वाला तथा ओशो के प्रवचनों की नकल करने वाला यह धर्मगुरु भगवान शिव और तंत्र की आड़ में आजकल मिशनरी शक्तियों के लिये भूमिका तैयार करने पर लगा हुआ है। राजसत्ता,धनसत्ता और धर्मसत्ता के बल पर कुछ भी अनैतिक,अधार्मिक, गैरकानूनी काम सरलता से किया जा सकता है।इसी के बल पर बौद्ध मतानुयायियों ने तीन सदियों तक भारत में बहुतायत से मतांतरण, नरसंहार, ग्रंथों में प्रक्षेप तथा सनातनी प्रतीकों और जीवनमूल्यों को आघात पहुंचाया था।
……
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119

Language: Hindi
51 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

दोहा पंचक. . . . मनवा
दोहा पंचक. . . . मनवा
sushil sarna
हर एक अनुभव की तर्ज पर कोई उतरे तो....
हर एक अनुभव की तर्ज पर कोई उतरे तो....
दीपक बवेजा सरल
प्रणय गीत
प्रणय गीत
हिमांशु Kulshrestha
अमरत्व
अमरत्व
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
अंधभक्तो को जितना पेलना है पेल लो,
अंधभक्तो को जितना पेलना है पेल लो,
शेखर सिंह
मैं अपनी सेहत और तरक्की का राज तुमसे कहता हूं
मैं अपनी सेहत और तरक्की का राज तुमसे कहता हूं
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
एक कहानी, दो किरदार लेकर
एक कहानी, दो किरदार लेकर
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
शायद आपकी यात्रा का यह चरण तैयारी के बारे में है। शायद यह उन
शायद आपकी यात्रा का यह चरण तैयारी के बारे में है। शायद यह उन
पूर्वार्थ देव
दुनिया ए आतिशखाना
दुनिया ए आतिशखाना
ओनिका सेतिया 'अनु '
सत्य की खोज, कविता
सत्य की खोज, कविता
Mohan Pandey
काश थोड़ा सा वक़्त, तेरे पास और होता।
काश थोड़ा सा वक़्त, तेरे पास और होता।
Manisha Manjari
*रखो हमेशा इस दुनिया से, चलने की तैयारी (गीत)*
*रखो हमेशा इस दुनिया से, चलने की तैयारी (गीत)*
Ravi Prakash
कहानी -आपदा
कहानी -आपदा
Yogmaya Sharma
महंगाई एक त्यौहार
महंगाई एक त्यौहार
goutam shaw
साधक परिवर्तन का मार्ग खोज लेते हैं, लेकिन एक क्रोधी स्वभाव
साधक परिवर्तन का मार्ग खोज लेते हैं, लेकिन एक क्रोधी स्वभाव
Ravikesh Jha
माया - गीत
माया - गीत
Ram kishor Pathak
अंतिम क्षणों का संदेश
अंतिम क्षणों का संदेश
पूर्वार्थ
यूं जो देख मुझे अब मुंह घुमा लेती हो
यूं जो देख मुझे अब मुंह घुमा लेती हो
Keshav kishor Kumar
🙅अजब संयोग🙅
🙅अजब संयोग🙅
*प्रणय प्रभात*
भट सिमर वाली
भट सिमर वाली
विधानन्द सिंह'' श्रीहर्ष''
हँसी!
हँसी!
कविता झा ‘गीत’
3797.💐 *पूर्णिका* 💐
3797.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"ऐसी राह पर"
Dr. Kishan tandon kranti
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
अंसार एटवी
रिश्तों की सार्थकता
रिश्तों की सार्थकता
Nitin Kulkarni
thanhthienphu
thanhthienphu
Thanh Thiên Phú
हमारी फीलिंग्स भी बिल्कुल
हमारी फीलिंग्स भी बिल्कुल
Sunil Maheshwari
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
Dr Archana Gupta
मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
Rambali Mishra
इस खामोशी में हम तेरी औकात छुपाए बैठे हैं,
इस खामोशी में हम तेरी औकात छुपाए बैठे हैं,
raijyoti47.
Loading...