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17 Mar 2025 · 2 min read

32) नारी (राधेश्यामी छंद)*

नारी (राधेश्यामी छंद)
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1)
नारी में क्षमा दया ममता, नारी में नेह समाया है।
नारी है सब जग की पीड़ा, अपनत्व-बोध की काया है।।
2)
नारी में निहित अहिंसा है, नारी ने कोमलता पाई।
पर-पीड़ा से जो दृवित हुई, वह जग में नारी कहलाई।।
3)
नारी के कोमल शब्द सदा, नारी की ही मृदु वाणी है।
नारी ने समझा गैर नहीं, धरती का कोई प्राणी है।।
4)
नारी में धैर्य अपार भरा, वह शांत-भावना वाली है।
नारी ताना-बाना बुनती, सपनों की मीठी प्याली है।।
5)
नारी का रंग-रूप दुर्लभ, नारी की मोहक काया है।
ईश्वर की रची हुई अद्भुत, नारी ही समझो माया है।।
6)
नारी को दुर्बल मत मानो, वह दुर्गा और भवानी है।
नारी हर युग में शौर्य-भरी, वीरों की एक कहानी है।।
7)
नारी ही सिंह-सवार हुई, नारी के हाथों में भाला।
नारी का काली-रूप हुआ, ज्यों धधक रही पावन ज्वाला।।
8)
नारी के हाथों में त्रिशूल, नारी तलवार चलाती है।
रिपु का जिसने संहार किया, वह नारी ही कहलाती है।।
9)
यह केवल नारी है जग में, जिसने मॉं का दर्जा पाया।
नौ माह गर्भ में ढका रहा, शिशु ने पाई मॉं की काया।।
10)
शिशु को लगाव है माता से, यह जन्म-पूर्व का नाता है।
दो धड़क रहे दिल एक देह, यह रचता अजब विधाता है।।
11)
यह नारी है पति को पाकर, अपना घर नया बसाती है।
बचपन से यौवन जहॉं रही, वह छोड़ नए घर जाती है।।
12)
यह नारी है जो मैके से, बस विदा समय ही रोती है।
फिर नया देश परिवेश नया, पाकर आनंदित होती है।।
13)
नारी है नर की सहयात्री, सुख-दुख दोनों मिल गाते हैं।
परिवार अनूठा दुनिया में, दोनों मिल सहज चलाते हैं।।
14)
नारी घर की आधारशिला, घर की शुभता बस नारी है।
घर की मुस्कान सदा नारी, घर नारी का आभारी है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश

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