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17 Mar 2025 · 2 min read

*इसलिए बहू का अभिनंदन, सासों की जय-जयकार करो (राधेश्यामी छंद

इसलिए बहू का अभिनंदन, सासों की जय-जयकार करो (राधेश्यामी छंद)
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1)
इस समय हर जगह सासों की, यह ही दुख भरी कहानी है।
पहले सासों की चलती थी, अब बहुओं की मनमानी है।।
2)
पहले के युग में सासों की, बेड़ी बेहद दुखकारी थी।
हर बहू सास के बंधन में, कुछ नहीं कर सकी हारी थी।।
3)
पहले की सासों का शासन, सारी बहुओं पर चलता था।
यह सासों का अनुशासन था, यह सूरज कभी न ढलता था।।
4)
बहुओं के आने-जाने पर, सासें सौ रोक लगाती थीं।
सासों की अनुमति लिए बिना, बहुऍं कब आ-जा पाती थीं।।
5)
घर में बहुओं के रहन-सहन, खाने-पीने पर बंधन था।
बहुओं का अपना तन तो था, पर पराधीन उनका मन था।।
6)
सब भूतपूर्व बहुओं की यह, देखो कैसी लाचारी है।
बहुओं के आगे चुप सासें, बहुओं की शेर-सवारी है।।
7)
बहुओं को खुश करती रहतीं, उनकी इच्छा से जीती है।
मन ही मन घुटती हैं सासें, कड़वे घूॅंटों को पीती है।।
8)
सच पूछो तो यह नया दौर, सचमुच नूतन ही आया है।
यह सामंजस्य-प्रधान समय, सासों-बहुओं ने पाया है।।
9)
अब नए दौर में यह समझो, घर में दो-दो सरकारें हैं।
अर्थात म्यान है एक किंतु, उसमें दो-दो तलवारें हैं।।
10)
अब सास दबाएगी जिसको, वह बहू अलग हो जाएगी।
सासू मॉं का बेटा लेकर, वह घर फिर नया बसाएगी।।
11)
अब सास बहू दोनों को ही, मिलजुल कर दाल गलानी है।
वरना दोनों की लुटिया ही, सच कहो डूब ही जानी है।।
12)
जो पहने बहू पहनने दो, जो खाती है वह खाने दो।
बहुओं को सासों मत टोको, वह जहॉं जा रहीं जाने दो।।
13)
अब समझदार है नई बहू, वह पढ़-लिख कर ही आई है।
वह सास-ससुर पर कब आश्रित,अब उसकी निजी कमाई है।।
14)
इसलिए बहू का अभिनंदन, सासों की जय-जयकार करो।
हम दोनों की-सी कहते हैं, दोनों वंदन स्वीकार करो।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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