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15 Mar 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . बीती होली

दोहा पंचक. . . . बीती होली

होली बीती रंग का, बीत गया त्योहार ।
लेकिन अब तक भंग का, उतरा नहीं खुमार ।।

खूब उतारा पर नहीं, तन से उतरा रंग ।
सुर्ख कपोलों पर दिखे, अधरों का हुड़दंग ।।

इतना खेले आज तक, उतरी नहीं थकान ।
हाथ जोड़ सजनी कहे, साजन अब तो मान ।।

दर्पण देखा लाज से, बदला मुख का रंग ।
रँग मलने की आड़ में, खूब हुई थी जंग ।।

बीती होली की बड़ी, मीठी लगती याद ।
क्या- क्या बैरी कर गया, लाज भरे संवाद ।।

सुशील सरना / 15-3-25

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