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22 Mar 2025 · 2 min read

#श्री_शीतलाष्टमी

#शीतलाष्टमी_विशेष-
■ हाथ मे झाड़ू : गर्दभ वाहन…
★ सनातनी पर्व परम्पराएँ व मान्यताएँ
★ अवधारणा धार्मिक भी, वैज्ञानिक भी
【प्रणय प्रभात】
स्वच्छता की प्रतीक झाड़ू और श्रम का परिचायक गधा। संकेत शायद साफ-सफाई के माध्यम से उत्तम स्वास्थ्य बनाए रखने का। विज्ञान सम्मत संदेश की यह विशेषता मात्र सनातनी संस्कृति के संवाहक तीज-त्यौहारों में ही है। प्रसंग में है चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी। जिसे श्री शीतला अष्टमी के रूप में तिथिनुसार मनाने की परंपरा है। जिसे “बासौढा” कहा जाता है।
इस पूजन पर्व की अधिष्ठात्री मां शीतला हैं। जो अपने नाम के अनुसार शीतलता प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। चूंकि होली के बाद चैत्र मास के साथ ग्रीष्म ऋतु आरंभ हो जाती है, जो ऋतु संक्रमण के काल मे तमाम रोग साथ लाती है। इनमें अधिकांश रोगों का सम्बंध अस्वच्छता व अशुद्धता से होता है।
सदियों पुरानी लोक-संस्कृति इसी व्याधि के विरुद्ध शीतलाष्टमी के माध्यम से स्वच्छता व शुद्धता की प्रेरणा देती है। जिसका प्रमाण माता का स्वरूप है। हाथ मे झाड़ू और साथ में वाहन के रूप में गधा रखने वाली मां शीतला का रूप स्वयं सफाई से सेहत तक का संदेश सांकेतिक रूप से देता है।
धार्मिक मान्यतानुसार बच्चों को चेचक (खसरा) सहित अन्य ग्रीष्म-जनित रोगों से शीतला माता ही बचाती हैं। जिनका संदेश उनके नैवेद्य से भी मिलता है। पूजन पर्व की पूर्व संध्या अर्थात सप्तमी को रात्रि-वेला में भोग के लिए पारंपरिक खाद्य पदार्थ (व्यन्जन) पूरी शुद्धता व सात्विकता के साथ तैयार किए जाते हैं। जिन्हें अगले दिन सूर्योदय से पूर्व माता रानी को अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
ठंडे (बासी) भोजन के पीछे दो संदेश छिपे हैं। पहला यह कि ग्रीष्म ऋतु में ठंडी चीजों का सेवन शुद्धता का ध्यान रखते हुए किया जाए। दूसरा यह कि आज के बाद शीत ऋतु तक बासी भोजन के उपयोग से दूरी रखी जाए। ताकि आपका स्वास्थ्य अच्छा रहे और आप श्रम योग्य रहते हुए समृद्ध बनें।
सर्वविदित है कि गर्मी में खाद्य व पेय पदार्थ जल्दी ख़राब व संक्रमित हो जाते हैं। इसलिए यह माना जाता है कि खाने-पीने की बासी चीजों का सेवन इस पर्व के भोग के बाद बन्द कर दिया जाए। ताकि उदर व पाचन तंत्र जनित रोगों से मुक्त रहा जा सके।
इन्हीं सब प्राचीन मान्यताओं के साथ आज श्री शीतला माता का पूजन किया गया। तमाम परिवारों की महिलाएं स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह पर्व होली के बाद पड़ने वाले पहले शुक्रवार को मना चुकी हैं। इस पूजन पर्व को होली के बाद अष्टमी से पहले पड़ने वाले सोमवार को मनाए जाने का भी विधान है। तो यह है आज के लोक पर्व से जुड़ी जानकारियां। अनुरोध यही कि स्वच्छता व शुद्धता का पूरा ध्यान रखें तथा माता रानी के रूप में मां प्रकृति के प्रकोप से बचे रहें। जय माँ शीतला।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)

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