क्यों खामोश हो जाते हो ?

क्यों खामोश हो जाते हो ?
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
मेरी बाते सुन कर !
मेरी चीखे और आवाजें सुनकर,
जब कोई दरिंदा हैवानियत में आ जाता है।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
मुझे डरा हुआ ,सहमी हुई देख कर,
रोती चिल्लाती बेइज्जत होती हुई,
न्याय के लिए भीख मांगती हुई खड़ी होती हूँ।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
भीड़़ में मुँह मोड़़ कर,
रास्ते में अकेला छोड़ जाते हो,
उनकी हिम्मत बढ़ा देते हो ,आपनी नहीं हूँ कह कर।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
ज़बाब क्यों नहीं देते हो ?
बेटी अपनी भूल जाते हो,
आज परायी हूँ तो कल तुम्हारी अपनी होगी।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
हिम्मत किसने बढ़ाया है?
हौसला किस समाज से आया है?
आईने में एक बार चेहरा उठा कर तो देखो।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
जब पालते हो असभ्य और नीच इंसान,
संस्कार विहीन बढ़ते हुए औलाद,
मिट्टी में मिला देते है, आबरू और नाम।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
कैसे छोड़ देते हो खुला और बिना लगाम,
बर्दास्त नहीं होती है पीड़ा अब मुझसे,
रुकते नहीं आंसू गिरते नेत्रों से हृदय बीच।
क्यों ? क्यों खामोश हो जाते हो ?
मेरी आवाज कब तुम तक पहुँचेगी ?
कब मुझे होगा भरोसा इस समाज से,
तोड़ दो चुप्पी आज ही,है यह आखिरी पुकार मेरी।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर।