*दरवाजे की ओट से, होली रही निहार (कुंडलिया)*

दरवाजे की ओट से, होली रही निहार (कुंडलिया)
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दरवाजे की ओट से, होली रही निहार
कितना उड़ा गुलाल है, पिचकारी की धार
पिचकारी की धार, रंग मत देना प्यारे
गोरे-गोरे गाल, अभी कोरे हैं सारे
कहते रवि कविराय, बज रहे चहुॅं-दिशि बाजे
मन है घर के द्वार, अधखुले हैं दरवाजे
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451