सुनो प्रिये!
सुनो प्रिये!
प्रेम तुमसे ही है और तुमसे ही रहेगा अटूट रहेगा असीम रहेगा.. मर्ज़ी तुम्हारी है.. मैं तुम्हें कभी बांध कर नही रखना चाहता, तुम प्रेम हो , कोई गुलाम नहीं.. प्रेम में कोई बंधन नही होता.. ये तो रूह का मिलन है.. तुम उतने ही स्वतंत्र हो जितनी किसी पेड़ो की शाख होती हैं, लेकिन वो शाख जब तक पेड़ के साथ होती है एकदम हरी भरी मजबूत और खुश रहती है और अपनी मर्ज़ी से हवा से अठखेलियाँ करती है । मैं बस वो आधार बनना चाहता हूँ जिसके साथ जुड़कर तुम भी खुश और स्वतंत्र महसूस करो..
प्रेम सदैव स्वतंत्र होना चाहिए! स्वतंत्र प्रेम बहुत खूबसूरत होता है..
लेकिन इतना भी स्वतंत्र न छोड़ दो हमें की हम …..
दरअसल प्रेम हर रूप में खूबसूरत है जिसने प्रेम में जिया है उसकी परिकल्पना सिर्फ वही कर सकता है परन्तु इस दौरान वियोग, टकराव, विवाद, जैसा कोई शब्द या उससे मिलता जुलता कोई अक्षर कहीं इर्द गिर्द से भी गुजरता है तो धड़कने तुरन्त अस्सी से मणिकर्णिका हो जाती हैं!
फिलहाल विगत कुछ दिनों से जिंदगी भी मणिकर्णिका ही बनी हुई है एक चिता कायदे से बुझती नही की दूसरी लग जाती है!
रिश्ता रूह का✍️