सडक मार्ग से वायुमार्ग तक का फर्क!
जब हम सडक पर,
करते हैं सफर,
किसी सार्वजनिक वाहनों पर,
दो पहिया वाहन से लेकर,
बस ओटो टेक्सी तक,
और चलते चलते,
जब कभी,
थरथराता है वाहन,
किसी कारण,
या अकारण,
तो चौंक जाते हैं,
हम सभी,
या फिर, कभी
लहराता है वाहन,
घबराता है मन,
शिहिर उठता है,
तन बदन !
कभी कभी,
चालक को,
लगाना पडता है ब्रेक,
अचानक,
यकबयक,
उछल पडते हैं,
अपनी सीट पर,
या लुडक जाते हैं,
बगल गीर पर,
मचाते हैं शोर,
दिखाते हैं रोष,
जताते हैं रौब,
चालक-परिचालक ,
या किसी और पर,
डांटना डपटना,
चीखना चिल्लाना,
झगडना,
मारपीट पर उतारु हो जाना!
गर यदि,
लग जाए चोट,
या आई गई हो,
कोई खरोच,
तो बात आई गई नहीं करते,
करते हैं रिपोर्ट,
पुलिस कचहरी तक,
भीड़ जाते हैं,
आम आदमी की तरह!
दूसरी ओर,
करते हैं सफर,
रेल या वायुयान पर,
तो बदल जाता है नजरिया,
रेल पर बैठने की भागम भाग,
बर्थ की तलाश,
बुक हुई सीट की,
ढूंढम ढाढ,
छमता से अधिक का हुजूम,
अव्यवस्थाओं से परिपूर्ण,
सफर करने को मजबूर,
समय पर चलने का इंतजार,
सब कुछ रहता है,
रेलपथिकों के साथ,!
फिर भी,
करोड़ों लोगों को,
एकछोर से दूसरे छोर तक,
पहुंचाता है रेल नेटवर्क,
और गंतव्य से,
मंतव्य तक,
पहुंचने के मध्य,
रहता है मन आशंकित,
सुरक्षित रहे सफर,
और ऐसे में,
जरा सा भी,
हिचकोलों का आहट,
धरधराहट की शोर,
हिचकोलों का दौर,
हिलाकर रख देता है,
क्यों कि,
अक्सर ,
रेलमार्ग पर,
होते रहते हैं हादसे,
हताहतों का भी,
हो जाता है मुआवजे का एलान,
समझा जाता है इसे बात आम,
और हरबार,
एक आश्वासन,
किया जाएगा सुधार!
इधर,
वायुयान का सफर,
व्यवस्थाओं पर,
है निर्भर,
चाकचौबंद व्यवस्था,
यात्रियों की निर्धारित संख्या,
ना खामा खयालि,
ना समय कि हिला हवालि,
नियम कायदे अनुसार,
चलने से पूर्व ,चलने का उदघोष,
सीट बैल्ट को बांधने पर जोर,
यान की धिमी चाल से आरंभ,
धिरे धिरे रफ्तार दौर,
और अचानक ,
जमीन को छोड कर,
आसमान की उडान तक,
शांत चित वातावरण,
फिर एक निश्चित गति के साथ,
हवाओं और बादलों के मध्य,
गतंव्य से मंतव्य कि ओर,
सामान्य तह बिना हिले डूले,
बढ़ता जाता है आगे,
पर कभी कभी,
लहराते हुए होता है महसूस,
सुनाई देति है धरधराहट की आवाज,
लगता है जैसे ,
मार्ग में हो,उबड़खाबड़ ,
पर हवाओं में ऐसा तो संभव नहीं,
फिर क्यों,
होता है यों,
यह प्रश्न है मौन,
कि तभी,
विमान परिचारिका,
आकर मधुर सुरीले स्वर में,
बताति है मौसम का हाल,
रखें अपना ख्याल,
सीटबेल्ट बांधकर रखें,
चलने फिर ने का ना करें प्रयास!
उतरने से पूर्व भि,
बताया जाता है,
हम मंजिल के हैं निकट ,
शौच जाने या ना जाने का ,
कराया जाता है बोध,
सीट बैल्ट बांधने का पुन:अनुरोध,
उतरने पर रनवे पर रेंगता यान,
हलक से वापस आ जाते हैं प्राण,
सब कुछ रहता है विशेष,
सामाग्री के मिलने तक,
बहुत सुंदर रहता है फर्क,
ना किसी से तर्क वितर्क,
अपने काम से काम,
एक दम सामान्य!!
पर यह सब को नही है नसीब,
दूर है इससे गरीब,
यह असमानता का संकट,
बना रहा है,
और निकट भविष्य में,
दूर होने का कोई प्रयास,
नहीं,हो रहा है सार्थक,
बढता जा रहा है यह अंतर,
बना रहेगा, भेद;
काश मिट पाता यह विभेद!
और तब तक बना रहेगा यह फर्क,
चाहे दिए जाते रहे अनेकों तर्क!!