दोहा पंचक. . . . मनवा
दोहा पंचक. . . . मनवा
मनवा मन की कब सुने, करता इच्छित काम ।
कर्मों के अनुरूप ही, भोगे वो परिणाम ।।
काम क्रोध मद लोभ में, भूल गया इंसान ।
संचित सब छूटे यहाँ, जब होता अवसान ।।
हर अभिमानी की यहाँ, निश्चित होती शाम ।
सोच समझ कर कीजिए, जीवन का हर काम।।
क्यों अपनों से बैर है, क्यों गैरों से प्यार ।
मौका मिलते ही यहाँ, मुँह फेरे संसार ।।
मद में मनवा डूब कर, भूल गया परिणाम ।
अंतस्तल में भोग ने, जीना किया हराम ।।
सुशील सरना / 7-3-25