Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Mar 2025 · 1 min read

मेरा कुम्भ तेरा कुम्भ!!

एक मेरा कुम्भ एक तेरा कुम्भ
संगी साथियों से भरा कुम्भ,
एक डुबकी मेरी एक है तेरी,
इन डुबकियों से सज गया कुम्भ!
मेरा कुम्भ दो हजार तेहरा,
तेरा कुम्भ नया नया फेरा!
आते रहते हैं कुम्भ के मेले,
आदि काल तक ये चलेंगे,
आदि अनादि से आदि अनंत,
प्रारंभ तो है पर नहीं कोई अंत!
हिल मिल कर ऐसे चलते रहेंगे
आज हैं जो क्या कल भी रहेंगे
साथ थे हमारे जो वो तबके,
महाप्रयाण कर चले उनमें से कुछ कब के,
हम पुण्य का लाभ पाने वाले,
पाप और प्रायश्चित को धूलने वाले,
कल कोई किसी को याद करेगा,
क्यों अपना समय बर्बाद करेगा,
कल और आएंगे कुम्भ जाने वाले,
हम तुमसे बेहतर डुबकी लगाने वाले,
अपनी अपनी यादों में बसाने वाले,
स्मृतियों के झरोखों में चलता रहेगा कुम्भ!
समुद्र मंथन से हुआ जो आरंभ,
जाने कितनो को मथ चुका ये कुम्भ,
देव दानवों की वो छीना झपटी,
चलती आ रही है यह कपटा कपटी,
पाखंड और आडंबरों की रपटा रपटी,
अब अमृत कलश की नही है लडाई,
पर थम नही पाई है ये छीना झपटी!
नाशिक उज्जैन और हरिद्वार तक,
प्रयागराज इलाहाबाद के दरबार तक,
गंगा जमुना सरस्वती बहती रहेगी,
हम जैसे भक्तों की डुबकी लगती रहेगी,
कुम्भ के मेले आते जाते रहेंगे,
हम भी अपने झमेलों को उठाते रहेंगे,
कुम्भ की यादों को संजोते रहेंगे,
अपने अपने मन से भिगोते रहेंगे,
मेरा कुम्भ तेरा कुम्भ जपते रहेंगे,
कुम्भ को महाकुंभ कहते रहेंगे!!

Loading...