कुंडलिया. . . . .
कुंडलिया. . . . .
दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।
यादें बीती उम्र की, आँखों में दें स्राव ।
आँखों में दें स्राव , समझ में जरा न आता ।
कैसे आखिर वक्त , जिंदगी हर ले जाता ।
साँसों ने प्राचीर, देह की कैसे तोड़ी ।
यही समझने रोज, जिंदगी जाती दौड़ी ।
सुशील सरना / 1-3-25