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24 Feb 2025 · 1 min read

ये भी क्या कम है

ये भी क्या कम है हम चाहते हैं तुम्हें।
बताओ क्या हमसे भी राहतें है तुम्हें।

लिखो तुम मुकम्मल इश्क़ की दास्तां ,
मिलेगा तुझे ज़रूर कोई न कोई आस्तां।

किस से छिपी है , हमारी ये आवारगी
समझते हैं मगर ,सब इसे मेरी बेचारगी।

सुनती हूं खुद , अपनी किस्से कहानियां।
मुस्कराती हूं देख ,अपनी मैं नादानियां।

रात भर बस उस चांद का साया रहा
कुछ नहीं ,बस इक जख्म नुमाया रहा

सुरिंदर कौर

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