ये भी क्या कम है
ये भी क्या कम है हम चाहते हैं तुम्हें।
बताओ क्या हमसे भी राहतें है तुम्हें।
लिखो तुम मुकम्मल इश्क़ की दास्तां ,
मिलेगा तुझे ज़रूर कोई न कोई आस्तां।
किस से छिपी है , हमारी ये आवारगी
समझते हैं मगर ,सब इसे मेरी बेचारगी।
सुनती हूं खुद , अपनी किस्से कहानियां।
मुस्कराती हूं देख ,अपनी मैं नादानियां।
रात भर बस उस चांद का साया रहा
कुछ नहीं ,बस इक जख्म नुमाया रहा
सुरिंदर कौर