*अहसास*

अहसास (पद्य)
शीर्षक मै और मेरी तन्हाई
लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री दिल्ली
विधा पद्य काव्य स्वच्छंद
मेरी तन्हाई का आसरा मेरी लेखनी और मेरी लेखनी के पुष्प मेरी रचनाएं।
मैं चाहता हूँ ये आप सब के हृदय को हों समर्पित और आपका प्रेम पाएं।
अहसास से भरी हों प्रेम से रची हों आपके संग – संग आपके परिवार में ख़ुशी लाएं।
दुःख सुख आनंद से भरी ये मेरी सुन्दर भाव अभिव्यक्ति से अलंकृत कविताएं।
इनमें कोई खोट हो, इनमें कोई चोट हो ऐसा नहीं इनके कारण आप को पहुंचे पीड़ा ये आपके हृदय को सताएं।
मेरी तन्हाई का आसरा मेरी लेखनी और मेरी लेखनी के पुष्प मेरी रचनाएं।
मैं चाहता हूँ ये आप सब के हृदय को हों समर्पित और आपका प्रेम पाएं।
अहसास से बढ़ कर प्यार से परिपूर्ण आपके मन आनंद की प्रतिरूप ये ललनाएं।
भाव आसक्ति की कसौटी पर खरी, अपितु हो सकता है व्याकरण और वर्तनी में इनके कमी ।
फिर मांग लूँ मैं क्षमा कौन सा आदमी है इस जगत में जिसमें न खामियां हों ?
मेरी तन्हाई का आसरा मेरी लेखनी और मेरी लेखनी के पुष्प मेरी रचनाएं।
मैं चाहता हूँ ये आप सब के हृदय को हों समर्पित और आपका प्रेम पाएं।
छू लें आपके मन को आपके तन को करें झंकृत रसना आपकी बोले आहा – आहा, ऐसी हो इनकी साहित्यिक स्तुति।
ईश्वरीय आशीष हों प्रेम सरिता इनसे बहे, शीतल बयार हो , आंदोलित व्यक्तित्व , निकले स्वतः मधुर गीत ।
वैश्विक समन्वय सौहार्द संस्कृति दया आदर कृपा बरसती रही जब – जब कोई इनको गुनगुनाए।
मेरी तन्हाई का आसरा मेरी लेखनी और मेरी लेखनी के पुष्प मेरी रचनाएं।
मैं चाहता हूँ ये आप सब के हृदय को हों समर्पित और आपका प्रेम पाएं।
हों भागीरथी की भव्य चित्रण, यमुना की यामिनी और अलकनंदा का अभिनंदन इनसे।
ऐसी हो शब्द रचना ऐसा ही समन्वय हो, छंद हों न हों, अलंकार हों अहसास गहरा हो मगर प्यार हो।
मेरी तन्हाई का आसरा मेरी लेखनी और मेरी लेखनी के पुष्प मेरी रचनाएं , मैं चाहता हूँ ये आप सब के हृदय को हों समर्पित और आपका प्रेम पाएं।