1) हम कुंभ नहाकर आए हैं, हम भारत संग नहाए हैं (राधेश्यामी छंद)
हम कुंभ नहाकर आए हैं (राधेश्यामी छंद)
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1)
हम कुंभ नहा कर आए हैं, हम भारत-संग नहाए हैं।
हमको डुबकी में देश मिला, हम बाहों में भर लाए हैं।।
2)
हमको भारत के प्रांत मिले, सब प्रांतों की ही बोली थी।
सब दूर-पास से आए थे, अपनी-अपनी हर टोली थी।।
3)
हमको डुबकी में वही मिला, जल जो सब ने ही पाया था।
निज जाति मिटा दी सबने ही, जो भी आ कुंभ नहाया था।।
4)
यह था प्रयाग का जल-प्रवाह, सबको ही जल इकसार मिला।
जिस जल में डुबकी अपनी थी, सबको वह जल हर बार मिला।।
5)
सबके माथे पर चंदन था, वह कुशल हाथ बलिहारी थे।
सब एक भॉंति से चमक रहे, सब एक भॉंति आभारी थे।।
6)
कंधे से कंधा टकराते, जय गंगा जय जमुना गाते।
हम अमृत पर्व मना आए, अमृत भारत में मस्ताते।।
7)
हमने पाया जल में अमृत,अमृत में गात नहाया था।
यह था प्रयाग का जल जिसमें, नभ ने अमृत बरसाया था।।
8)
सारे विष हमने दूर किए, सदियों से जमा किए मन ने।
डुबकी ने पाप मिटाए सब, धो दिए पाप जल में तन ने।।
9)
हम शुद्ध हुए अंतर्मन से, यह हम ही नहीं अकेले थे।
हम लाखों और करोड़ों थे, जो गए कुंभ के मेले थे।।
10)
हम कुंभ नहा अब आए हैं, अब देश-एकता लाऍंगे।
हम जाति-भेद को भूल सभी, मॉं भारत पुण्य बनाऍंगे।।
11)
बारह वर्षों तक सतत हमें, मन में प्रयाग को रखना है।
जो अमृत जल में बरसा था, उस बूॅंद-बूॅंद को चखना है।।
12)
हम कुंभ गए थे जो सारे, सहयात्री-कुंभ कहाऍंगे।
मन-वचन-कर्म से एक प्राण, हम एक हृदय हो जाऍंगे।।
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