दोहा पंचक. . . . . विविध
दोहा पंचक. . . . . विविध
आँसू, आहें, कहकहे, सब जीवन के रूप ।
सुख की छोटी छाँव है, दुख की लम्बी धूप ।।
इच्छाओं की आँधियाँ, चलें साँस के साथ ।
खाली लोलुप के रहें , सदा अंत में हाथ ।।
कितनी भी कोशिश करो, ढले रूप की धूप ।
सेज अन्त की एक सी , हो चाहे वह भूप ।।
धोते -धोते थक गई, पाप गंग की धार ।
कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार ।।
किसने देखा आज तक, स्वर्ग-नर्क का द्वार ।
कर्मों के अनुरूप ही, फल होते साकार ।।
सुशील सरना / 20-2-25