क्षितिज के उस पार …
सपनक्या? मानो ओस की बूंदें ,पाया भी खोया भी ,रश्मियों में खिला भी , अपनो को गिला भी किया किंतु न मिला मुझे मेरा सपन
राह बनानी मुझे क्षितिज तक क्षितिज मेरा सपन ,
और जाना मुझे क्षितिज के उस पार …
धुंधली विसंगतियों को मिटाना ,
फैली सदसंगतियों को समेटना रचना एक ऐसा किरदार जो नींव का पत्थर है आकार देना उसे ,दिल में जो बाकी कसक है
पं अंजू पांडेय अश्रु