#मुक्तक-

#मुक्तक-
■ मेरा शग़ल नहीं।।
[प्रणय प्रभात]
है ख़्वाब सी ये ज़िंदगी सच जानते हैं सब,
जीना भरम के साथ में फिर भी सहल नहीं।
इंसान हूँ इंसान ही मुझ को अज़ीज़ हैं,
परछाइयों से खेलना मेरा शग़ल नहीं।।
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शब्दार्थ-
सहल-आसान, अज़ीज़-प्रिय, शग़ल-काम।